दृष्टांतप्रदीपिनी सटीक द्वितीय भाग | Drshtant Pardipini Satik Dvitiy Bhag

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Drshtant Pardipini Satik Dvitiy Bhag by पंडित देवी सहाय शुक्ल - Pandit Devi Sahay Shukl

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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द्वितीयभाग । ह शछ बाण सर्पकी वेधकर शिकरे के लगा ओर वह सर्प ऊंभलाकर व्याधपर गिरा उसे काटखाया ऐसे वे. तीनों मरे ओर कषूतर - ज़ीवता रहा ॥ पर इति श्रीशुक्नदेवीसहायकतदृष्टन्तप्रदीपिन्यांमि श्र '.... निवन्धे दशमः प्रदीपः॥ १० ॥ -.. » अथेकादशः प्रदीपः॥ यतो यतों धावति देवचोदितं मनोविकारात्मक माप पतञ्चसु ॥ ग॒ुणेषु सायारचितेषु देहयसो -प्रपय मानः सह तेन जायते ॥ १॥ स्वप्ने यथा पश्यति ' देहमीदशं मनोरथेनामिनिविश्चेतनः ॥ दृष्टश्ु ताम्याम्मनसा शुचिन्तयन प्रपच्मते तत्किमपि हप स्मृति! ॥२॥ यतोयतोधावति, पर तीन ह० पहिले “ य॑ थे वापि स्मरेन्‌ , भाव॑” कह कर लिख आये हैं। अबे स्वभ्रे यथापर कहते हैं कि एक भड़भूंजा, भाड़ कोक रहा था. उसके आगे से राजा की सवारी निकली तो उसने देखकर पश्चात्तापकिया कि देखो में राख में सना वेठा ओर राजा इस ठाठ से जाता है यह कहते २ उसकी आंख लगगई तो तुतेही स्वप्न में राजाहोगया सुन्दर ु रानी के साथ सुख से, रमणकर . रहा था इतने में दो ग्राहक ' आय बोले अरे भड़भूज भाड़भूज़ तेयार कर वह स्वर्न के आनन्द में मग्न था कुछ सुधि,न भई तो उसकी भड़भूजी ने ' आकर उसके दो लातमारी और कहा रे दई मारे तोहि स्‌मे नहीं ये दोय ग्राहक कंबके खड़े हैं. तव तो घंबड़ाकर




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