बुद्ध चर्य्या | Buddh Charyya

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Buddh Charyya by राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankrityayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बाल्य । शाल बन था। उस समय (थह वन ) मूल्से ऐकर शिवस्की घाखाओो तक पाँतीसे फूल हुआ था। पूलो ओर ढाल्योपर पाँच रह्बाके अमर गण, कौर नाना प्रकार+ पक्षि सघ भर स्वस्से कृजन फरते पिचर रहे थे । सास छम्बिनी वन चित्र (--विचित्न ) रुता बत--जेसा, प्रतापी राजाफे सुप्रज्ञित बाज़ार-जेसा (जान पता) था। उसे देस, देवीक सनम श्ाढ पनमें सैर फरनेकी इच्छा हुईें। अफसर टोग देवीकों ऐे, शार बनमें प्रविष्ट हुये । बह सुन्दर शारवे नीचे जा, उसश्याल (--साख्‌ )की ढाली पक्डना चाहती थी। शाल शाखा अच्छो त्तरह सिद्ध किये बतकी छड़ोके नोककी आँति सुडका देवीके हाथके पास आ गई । उसने हाथ पा शासा पफड छो । उस समय उसे प्रमय पेदना आरम्भ हुईं। लोग ( दर्द गिदे ) कनात थेर ( स्वयं ) झल्ग हो गये। शाल-शाखा पफड़े खड़ेही फसड़े, उसे गर्भ उत्थान हो गया। उस समय चारो शुद्धचित्त महात्रह्म सोनंका जाल (हायमें ) लिये हुये पहुंचे, योर जालम वोधिसत्पवों ऐेकर माताक सन्पुप्त स्पएर धोएे--देवी। सन्तुष्ट होभो, हुम्ह महाप्रतापी पुत्र उत्पन्न हुआ है? । जिस प्रशर दूखेर प्राणी मातारी कोससे, गनदे, मर विलिप्ति निम्लते €, वेसे पोधिमत्त्व नहीं निरल्‍्ते । बोधिसत्व तो धमासन (-ूव्याप्त गद्दी )से उतस्ते धर्मकथरिक (+>धर्मोफेशर )क समान, सीढ़ीस उतस्ते पुरुण्ये समान, दोनो हाथ भोर दोनों पेर पस्तार खड़े हुपे ( सनुप्य )के समातर माताकी मौके मल्‍्से ब्रिलकुर अलिसप्त, काशी देशके शुद्ध, निमछ यम रक्‍्ये सणि रसके समान, चमझने हुये, साताकों कोखसे निफरते है । तय चारों महाराजाआन उन्‍हें सुतणज्ञालम लिय्रे खड्टे प्रहद्माआक हाथसे ऐकर, बोसह खझुगघमे में प्रहण किया। उनके हाथप्ते मनुप्योने वृहुछए करण्डम ग्रहण किया । मजुष्योके द्ाथसे उ्कर ( जोधिसक्तने ) शथित्रा पर सड्टे हो, पूर्व दिशा का ओर देखा। अनेक सहस्त खकयार एक आँगन (से ) हो ग्रे। पह्दा देवता ओर भजतुप्य गंध भारा आदिसे पूजा काते हुए पोले--'महाउुरुए, यहाँ आप ज॑पा कोइ नहीं है, बढ़ा तो कहसे होगा? । वोधिपत्यन चारो दिशायें चातो अनु ( >॑ूफोग ) दिशायें, नीचे ऊपर दु्सों ही दिशाओका अवलोकन का, अपने जेसा ( किसीको ) न दखल, उत्तर दिशा ( की ओर ) सास पग गसन किया। (उस समय ) महत्यह्माने फेतच्छन्न धारण किया, सुपामोने ताछ॒ज्यजन (>पंखा), और सन्‍्य देवताआने राजाओक अन्य *क्कुध भाण्ड हाथर्म लिये। खाते पगपर पहुँच--'में संसारम सर्वश्रेष्ठ हूँ? ( पुरुष ) पुंगयोकी इस प्रथम घाणीका उचारण फरते हुये मिंहनाद किया । जिस समय वोधिसत्त्व छुम्बिनों धनमें उत्पन्न हुये, उसी समय रएुल साता, छन्न (>-शेन्दरुक ) अमात्य (>अफ्मर ), काछ डदायी आमात्य, *आजानीय गजराज, कन्‍्यक अश्वराज, १ महायोधि उक्ष, ओर खजाने भर चार घड़े उत्पन्न हुये। उाम ( कम ) एक गब्यूति («३ योजन ) पर, एक आये योजनपर, एक सीन गब्यूतिपर चार एक्र १ खट्ठ, छक्त, पगद्ी, पादुका ओर व्यज़न ( *पंखा)। ३ उत्तम जातिका। ३ बोध गया, ति० गया ( विहार ) का पीपल-इक्ष। हु




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