सांख्यतत्वकौमुदी प्रभा | Sankhytatvakaumudi Prabha

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Sankhytatvakaumudi Prabha by प्रोफेसर डॉ॰ अध्याप्रसाद मिश्र - Prophesar Dr. Adhyaprasad Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १४ ) मुनि थे । उदयवीर शास्त्री) और कालीपद भद्ठाचार्य* भी इस मत के हैं । षष्टितन्त्र का एक और उद्धरण सांख्यकारिका १७ के गौडपाद-भाष्य तथा माठर -ृत्ति में मिलता है। परमार्थ के चीनी अनुवाद में भी यह मिलता है। यह उद्धरण३ गयय में है । इन दोनों के अतिरिक्त एक ही उद्धरण और बचता है जो ५० वीं कारिका के गौडपाद-भाष्य तथा माहठर वृत्ति में आया है और जिसके विषय में सामान्य धारणा है कि यह षष्टितन्त्र का होगा, यद्यपि भाष्य और वृत्ति दोंनों में से क्रिसी में भी यह बात स्पष्ट नहीं कही गयी है, केवल शास्त्रान्तरे! और ग्रन्थान्तरे! शब्दों के हारा ही यह उद्धरण < प्रस्तुत किया गया है। यह भी गद्य में है। इस प्रकार अभी तक न तो यही सर्वथा निश्चित हो पाया है कि षष्टितन्त्र का कर्ता कौन था और न यही कि यह ग्रन्थ गद्य में था या पद्म में ! इस द्विविध अनिश्चयात्मकता का उल्लेख डा० बल्वाकर ने किया है । १... द््टव्य, 270०6611785 एफ पृणह एलआाक्रांगो (0०0४76९०४८६7८९ 11००6 हीं, पे० ८८२ । २. द्रष्टब्य, (50706 शिठंगेलाए छध्यग्राए४.. श9)र108079४ए 270 $ब्रापए2 जाहट-आपा'2, 7, तर, (2, 56० 1902, पे० ५१६, २० । ३. द्रष्टव्य का० गोौडपाद-भाष्य:---तथा चोक्त॑ पष्टितस्ते--- पुरुषाधिष्ठितं प्रधान प्रवंतते? । ४. द्ृष्टव्य, का ५० का गोडपाद-भाष्य;---एवमाध्यात्मिकबाह्मभेदांन्नव : तुष्ठयः तासां नामानि शास्व्रान्तरे प्रोक्तानि--भम्भ: सलिलं, मेधो बृष्टिः सुतमः पार सुनेत्र नारीकमनुत्तमाम्भसिकशु”” इति । ५. द्रष्टव्य, भण्डारकर कमेमोरेशन बाल्यूम, पे० १२७ पर डा० वेल्वा- ल्कर का िबधाबापापॉए बगाते प्री८ १६0०. ० _वक्रश्रब्रापरेते का




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