तत्वप्रदीपिका | Tatvapradipika
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
173 MB
कुल पष्ठ :
1127
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( २६ )
वह 'अवास्तविक वेद्यत्व', वेद्यत्वाभाव' का विरोधी भी नही है, इसलिये
अवास्तवादिस्वरूपवाले वेद्वत्व के रहते हुए भी वास्वविक वेद्यत्वाभाव ( स्वप्र-
काशत्व ) की सिद्धि हो सकती है । एवच इस रीति से स्वयम्प्रकाशत्व को सिद्ध
किया जा सकता है ।
इसपर प्रतिवादी कहता है कि वादी का उपर्युक्त कथन ठीक नही हे, क्योकि
घट?! मे ज॑स! व्यावहारिक (प्रमाण-सिद्ध-व्यावहारिक) वेच्चत्व है वैसा ही अनुभूति
में वेद्यत्व की सिद्धि का प्रयत्न करते पर भी उसमे स्वयम्प्रकाशत्व' की सिद्धि नही
कर सकते । क्योकि यदि व्यावहारिक वेद्यत्व के रहने पर भी अनुभूति” में यदि
स्वय प्रकाशत्व को मानोंगे तो घट पट को भी स्वप्रकाश' क्यो नही मानते ?
एवं च अनुभूति! स्वयम्प्रकाश न ट्रोकर 'घरट के समान ही वेद्य है । बव्योकि
व्यावद्दारिकवेद्यत्व भी स्वप्रकाशत्व का विरोधी ही है। एवच अनुभूति मे
व्यावहारिक वेद्यत्व के विद्यमान रहते उसका म्वप्रकाशकत्व कंते सिद्ध हो
सकता है ?
एक अन्य अजुमान प्रयोग से भी 'अनुभति' में वेद्यत्व' का होता सिद्ध क्रिया
जा सत्ता है, जैसे -अनुभूतिपद्ं, स्वगोचर गोचरज्ञानजन्यं, पद्त्वात्, कुम्भ-
पद्वत्”---अर्थात् अनुभूति पद, स्व वाच्यविषयक ज्ञात से जन्य हे, क्योकि उसमे
'पदत्व' है, जैसे--कुम्भपद, स्वगोचर ( स्ववाच्यविषयक्र ) ज्ञानजन्य हैं। इस
अनुमान से भी अनुभूति” में वेच्चत्व सिद्ध होता है ।
फिर भी इस दूसरे अनुमान में शक। यह होती है कि इसमे जो पहिल्ला गोचर'
पद है, उससे क्या विषय माज्नः विवक्षित है, या बाच्याथ” विवक्षित हे, अयवा
“'लक्ष्याथे! विवक्षित है ?
उक्त विकल्यपो में से प्रथम पक्ष (विषयमात्र) और द्वितीयपक्ष ( वाच्याय॑ ) तो
'सिद्धसाधनता' दोष प्राप्त होने से सगत हो नहीं सकते, उ्योकि “अनुभूति” शब्द
का विषय” और वाच्यरूप' जो अन्त/करणबृक्तिविशिष्ठ शान (अनुभव) हे, उमको
जान का गोचर (विषय) मानते ही है| अर्थात अनुभूतिपदवाच्य जो अन्तःकरण-
वृकत्तिविशिष्ट ज्ञान ( अनुभव ) है, उसमे ज्ञानगोचरता ( वेद्यता ) मानते ही है ।
इस प्रकार के 'सभी ज्ञानो में 'साक्षिवेद्यता? होती ही है।
किन्तु तृतीय ( लक्ष्य ) पक्ष में मुख्य ( वाच्य ) अर्थ की विवक्षा से प्रयुक्त
( बोले गये ) 'गज्गा! आदि पदों में व्यभिचार होगा। इस पक्ष में अनुमान का
आकार यह होगा--अनुभूतिपदं स्वलक्ष्यविषयकश्चानजन्यं, पद्त्वात्, गन्ला-
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