याज्ञवाल्क्यस्मृति | Yagvalkaysmriti
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
246
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about गिरजा प्रसाद द्विवेदी - Girja Prasad Dwivedi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(२)
इत्यादि विषयों का मनु आदि स्पृतियों में विस्तार से प्रतिपादन
किया गया है।याजवस्कयस्मृति के आदि में मन्वाज्रिविप्णुहारीत-
इत्यादि कई स्मृतियों के नाम ई । इससे निश्चित होता हें कि
इन सब स्मृतियों को देखकर। सबका सारभूद याज्षवस्क्यजी ने
अपनी स्मृति बनाई है। मल के वाद याज्वस्क्यजी का हो नाम
- लिया जाता है। वे बड़े महि, ब्रह्मज्ञानी ओर योगी थे। उनका
स्थान ऋषियों में बहुत ऊँचा माना गया है । इसलियें उनकी
स्मृति भी सबमान्य है।
इस स्मृति के सिवा) आप वाजसनेयिसंहिता ओर शतपथ-
ब्राह्मण के भी आविभावकर्ता हैं। एक योगशास्र को भी आपने
बनाया है । बृहदारएयक-उपनिषद् को आपने सूर्य मगवान से
4७
प्राप्त किया था । यह बात स्वयं इस स्मृति में लिखी है+--
क्षेयं चारएयकरमह यदादित्यादवाप्रवान।
योगशात्र॑ च मत्योक जय योगमभीप्सता ॥'
( प्रायश्चित्ताध्याय, श्लीो० १० )
पाणिनिसूत्रों के वातिककार सुप्रात्तिद्ध कात्यायन ने अपने
सवोनुक्रमणी नामक ग्रन्थ में--
_शुक्कवानि यजूषि भगवान् याज्ञवस्क्यों यतः प्राप त॑
'विवस्वन्तम् | ु
ओर शतपथब्राह्मण के शेष भाग में लिखा है--
आदित्यानीमाने शुक्कानि यंजूंषि वाजसनेयेन
याज्ञवल्कयनाख्यायन्त ।' रा
इन सव लेखों से याज्ववस्प्ग्न के प्रकृद किये हुए,वैदिक भाग
क्रा.पंता पूरा मिलता है। , 9»:
ध्ा हि 4 1
User Reviews
No Reviews | Add Yours...