नागानन्द | Naganand

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Naganand by गंगाधर इन्दूरकर - Gangadhar Indurkar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नागानरद प्रथम अंक “० नान्दी “ध्यान करने के बहाने से (तुम) किस (कामिनी) का चिन्तन कर रहे हो ? कामदेव के बाणों से व्याकुल इन (हम) लोगों की ओर क्षणमात्र दृष्टिपात (तो) करो । रक्षक होने पर भी तुम हमारी रक्षा नद्दी कर रहे हो। तुम भूठे ही दयालु कहलाते हो। तुमसे अधिक निर्देयी ओर दूसरा कौन है १” इस प्रकार मार (काम) की स्त्रियों द्वारा ईष्यां के साथ कहे (फटकारे) गये जो समाधि में सग्न थे, आपकी रक्षा कर ॥१॥ ओर भी, बोधि' (पूर्ण ज्ञान) की प्राप्ति के लिये ध्यान करते हुए सुनीन्‍्द्र (बुद्ध), जो धनुष तानकर (खड़े हुए) कामदेव के द्वारा देखे जा रहे थे, जड़े बंडे ढोल बजा कर “अब जीत लिया” (ओर) वल्गना करने वाले कामदेव के सेनिक जिन्हें ताक रहे थे, आभग, कम्पन, जेंभाई, सुस- कुराती हुई तथा आंखें मटकाती हुई अप्सराएँ जिन्हें देख रही थी, शिर भुकाकर खड़े मुनि एवं सिद्ध गण जिनका दशेन कर रहे थे तथा आश्चये से रोमांचित देवराज इन्द्र देव जिनकी ओर देख रहे थे, (ओर) जो इतनी विन्न बाधाएँ होने पर भी (समाधि से) टस से मस नहीं हुए, आपकी रक्षा करें ॥२॥ नान्‍दी के अनन्तर सूत्रधार--बस, अधिक विस्तार से क्या लाभ ? आज इन्द्रोत्सबः &संभवत: यह उत्सव भाद्रपद शु० १२ के दिन इन्द्र को प्रसन्न करने के लिये किया जाता था। किन्ही पुस्तकों में चन्द्रोत्सव पाठ है' | िलनिनननन




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