उत्तराध्ययन सूत्र | Uttaradhyayana Sutra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
466
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)झ०-१ ११
॥ “पा... + $ “्याइक हैं, 9 “प्याक.४: क “प्याक॥७ ०. 6 “याद 6 9 -प्यादकाक-- $ 8 “प्ययाआक-- पु 9 “पद. ६. $ “पाया.
पत्तो मे भाय णाहत्ति, साहू कन्लाण मण्णह |
पावदिद्टि उ अप्पादां, सास दासित्ति मएण॒इ ॥३६॥
विनीत शिष्य, गुरु शिक्षा को हिर्तेकारी मानता है । वह
सोचता है कि गुरु मृझे पुत्र, माई श्रोर अपना ही समभते है ।
इससे उल्टा पाप बुद्धिवाला शिष्य, अपने को दास के समान
मानता हैं ॥३६॥
श॒ कोवएण आयरियं, अप्पाणं पि ण कोवए ।
बुद्धोबघाई ण॒ सिया, ण॒ सिया तोत्तमवेसए ॥४०॥
सुशिष्य स्वय क्द्ध नही होवे, श्राचार्य को कुपित नही
करे, आचार्य का उपघात भी नही करे और उनके दोष भी नहीं
खोज ॥४०॥॥
आयेरियं कुंविय णश॒त्चा, पत्तिएणं पसायए |
विज्ऋविज्ध पंजलिउडो; वण्ज्ज ण॒ पुणोत्ति य ॥४१॥
आचायें को कुपित जानकर विनय से और प्रततीति
फारक वचनो से उन्हे प्रसन्न करे तथा हाथ जोड कर कहे कि
'अब कभी ऐसा पभ्रपराघ नही करूँगा ॥1४१॥
धम्पज्जियं च ववहारं, वद्धेहिं आयरिय सया ।
तमायरंतो ववहारं,गरई णाभिगन्छ३ ॥४२॥
तत्वज्ञो ने सदा,घामिक व्यवहार का सेवन किया है ।
उस धम व्यवहार का श्राचरण करने वाला कभी निन्दित नही
होता ॥४२॥
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