सुश्रुतसंहिता | Sushrutasanhita
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
333
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[विषयाः बुशाड्टा
नेन्नविकृृतिजन्य भरिष्ट 7१२१
|केशविकृतिजन्य जरिष्ट : - १२३
मुखगलूमूधों विक्ृतिजन्य भरिष्ट.
भभरिश्टभूतमूच्छेन क्र
अरिश्सूचक पद्विकृति
शीतहस्तपादखासादिरिष्ट अर
सतिनिद्वानिद्राभाबादिरिष्ट अर
उत्तरो हलेहनादि श् ह
शेमकूपरक्तत्नाव-सथोरूत्युघुचऋरिष्ट
हृदय में बाताष्ठीलारिट अ
: स्वतन्त्ररूप से पादोश्थ शोथ मनुष्य
, को तथा सुखोत्य ख्री को मार
डालता है कर
आासकासरोगी के अतिसारादि रिप्ट
स्वेद, दाह, हिछ्का-शासादि. ? »
किक्ठा, नेत्र और मुख गत. ७» १२७
मुख, पाद और मेन्न क्कःश
सच्चोर्ृध्युसुचक शरीर डा कर
शरीर में गन्ध-विकृतिजन्य॒ ». ७
यूकासपंण तथा काक द्वारा रुग्य-
दत्त वकि नखाना रिश्दे. #
ज्वरातिस्ताररुप छ छ
जुदा तथा पा की जशान्ति रिष्ट है »
सद्योमरणसूचक प्रवाहिकादिरिष्ट .
आधी की रृत्यु में विषभोपचारादिद्वेतु »
प्रेतमूलादि के रोरी के पास उपस+
पंण से औषध निष्फल हो
जाती दै ते
बत्तीसशं अध्याय
स्वमावविप्रतिपत्ति अध्याय का
उपक्रम
शरीरावयद्यों का अन्यथा होना मरण
सूचक द्वोता दै अ्
झआ, पछक, ध्ोष्टादियत सच्चोरुत्यु-
वर
सूचक अरि्ट इस
कफ, पुरीप वीये का जल में हूवना
आदि रिए ञ
चस्तवद्िकपनादि भ्न्य रिष्ट क्र
उत्तम चिकित्सा से भी रोगबृद्धि
होना रिश्ट है रद
। महाज्याधि की सच्योनिवृत्ति रिष्ट है »
+ वक्त अरिष्टों का ठीक ज्ञाता चैद ही
*. राजमान्य होता है र्
तेत्तीसवां अध्याय
* अवारणीय ध्रध्याय का उपक्रम १२६
उपद्वयुक्त ब्याधियां रसायन दिना
अचिकित्स्य
ड़
पं दर 5 ्
हे छु०
- विषय-सूची
विषय:
आठ महारोग स्वभाव से ही दुश्चि-
कित्स्य हैं * - १२६
रोगोंकी असाध्यताम हेतुभूत उपद्च २
जसाध्य दातब्याधि के क्र ख
». प्रमेह के ।
#. कुछ्ठ के ड़
#. अश के 1]
» भगन्दर के क्र
#. जशमरी के डक
». मूहगर्भ के _का के
७. उदर रोग के कक
» ज्वर के ह्रक
?. अतिसार के न]
यह्नमा के छफ
# शुरुम के ।
». विद्रधि के कक
». पाण्डरोग के छः
». रक्तपित्त के श्र
». उन्मादके # परेढ
#». अपस्मार के ऊ़्छ
चौतीसवां अध्याय
युक्तसेनीय अध्याय का उपक्रम. १२८
विषादि से राजा की रच्चा करनी
चआहदिये ञ्
शत्रुद्वारा दूषित सार्स जलादि के छतछण ७
काछ तथा आगस्तु खत्यु अर
बैच, पुरोद्ित सदा राजा को बचावे »
कुमार्गरिप से धर्म भ्रभादिका बिनाश »
नृप से विशेषताएं, रु
देव के समान सदा ठप की रक्षा करें
सेना के केस्प में राजा के पास चंच्
का निवास हो रु
विज्ञ वैध की उपयोगिता दया ल्याति१२९
चिकित्सा के बैच, रोयो, औषध भौर
परिचारक ये चार पाद् हैं क्र
गरुणवान् दक्त बतुष्पाद मद्दान् रोग
को भी शीघ्र नष्ट करतेहैं.. »
दैच के बिना गुणदान् भी ज्िपाद
निरय॑क हैं * ञ्
गुणवात्र् बैच की पछुखता अ
मिषरू पाद छछण ख
ब्याधित #७ . # क्र
सेषज्न » #»# छ
परिचारछश छः
पेंदीसवां अध्याय ..
आतुरोपकमणीय अध्याय का उपकस १३०
पृष्ठाड्राः
रु
विपयाः पृष्ठाह्वाः
रोगी की चिकित्सा करने वाठा घेध
प्रथम रोगो की लायु की परीक्षा
करे
आयु शेप होने पर रोग, ऋतु भादि
को परीक्षा करे र
दीघोंयु के छत्तण छः
नवपायु के ७
मध्यमायु के ह . हे
लोकडट्टारा दीर्घायु छत्तण ्
मध्यमायुके रछोकोक्त छच्ण तया
सत्तर क्षायुप्य-सान जधन्यायु के
छच्चण तथा पद्चीस वर्ष फा आयु:
प्रमाण. अ
भायु के विज्ञानाथ भह्व-प्रत्यक्ष के
भमाण और सार का वर्णन... १३१
ब्रषण-चिछुकादि का प्रमाण क्र
मुख-ओ्रोषादि का प्रमाण अ
पुरुष का समस्त शरीर एक सौ बीस
अह्डुल छ
पुरुष पच्चीस में तथा सखी सोटहवें
बर्ष में परिपूर्ण दीय॑ होते हैं
दीघ, मष्यम और ह्वीन जायु चाछे
धृरुष स्वानुरूप फल प्राप्त करते हैं”
खार वर्णन ्
सत्तसार का छक्षण छ
शुक्रतार # # छ
मज़सार ” # श्र
अस्थिसार » ४ छू
मेदासार ? » ते
मॉसरक्तरवक्सार » छ
अड्ड-प्रत्यद्ञ प्रमाण और सार के द्वारा
आयु परीक्षण कर चिकित्सा करने
वाछा वेध सफल होता है. #
साध्य, याप्य और प्रत्याख्येय भेद से
ख्रिविध ब्याधियां तथा कौपस-
पिंक, प्राककेवल या अत्य छद्ण
सुक्त व्यि कः चल कछ
ओऔषपसर्थिक, प्राइकेवड और अन्य. .
छूचणयुक्त व्याधि की पहचान »
सोपद्व च्याधि की चिकरित्साविधि १३३
प्राक्केवछ तथा अन्यलछणयुक्त व्याधि
की चिकरिस्साविधि न््छ
अज्ञात रोग की चिकित्सा दोषानु- . __
सारकरे. ., छ
झीत ऋतु में शीत प्रतीकार उच्च
आतु में उष्ण प्रतीकार ही
चिकित्सा है अ
१३०
१ऐ२
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