भूलोक परिचय | Bhulok Parichay

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : भूलोक परिचय  - Bhulok Parichay

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about श्रीरुद्र नारायण - Srirudra Narayan

Add Infomation AboutSrirudra Narayan

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
( १७ 2 4 इसकी प्रतिम्ति तो दिखाई जा सकतो है परन्तु पुस्तक में ॥ इसका चित्र लगाना कठिन ही नहीं असम्मप सा काय्य है तथापि विद्वानों ने युक्ति निकाल दो की है प्पौर उससे काम भी चल दी जाता दे । ( देखो पृथ्वी का नकशा ) 1 पृथ्वी के गोले का व्यास ८००० मील के निकद है और परिधि २५००० मील । श्रव समझ सकते हा कि इसका क्षेत्रफल कितना है ? मजुष्य के इसके धरातल से काम पड़ता है, सब स्थानों में भ्राना जाना होता है। इस का रण प्रत्येक स्थान का ठिकाना नियत करना ध्याधश्यकीय है। जब एक कामज़ के विन्दु अथवा ब्लैकबोर्ड के एक चिन्ह का स्थान निर्धारित करने के लिये दो बातों का बताना ध्यावश्यक दोता कि पद्द थाएँ किनारे से इतनो दूर है । झौर ऊपर या नीचे के किनारे से इतने भ्रन्तर पर है , फिर पृथ्वी के गोले पर किसी स्थान का ठोर बताने के लिये प्रकृति रूप से 1४ केपल दोनों धर यों के दो विन्दु हैं । “४. ध्यूव इन नियत स्थानों से हम श्यागे ध्यपना फाम चलाते हैं-- हो । द्वोनों धर थों से बराबर ध्न्तर पर--पृथ्वी के मध्य--से कल्पित : ॥/ रेखा खिंची हुई मानी भई है, उसे घिपुषत्‌ था पिश्य-रेखा ्ि कद्दते हैं । ॥ | इसके समानान्तर मितनी रेखाएँ उत्तर ध्थवा दत्तिण #। ज्ॉँची ज्ञाती हैं उनके ध्त्ताश, ध्थवा समानान्तरचूत्त-रेखाएँ 1६ कद्दते हैं । हा इन रेखाओं में विषुषत्‌ रेखा का घृत्त सब से घड़ा है झोर अन्य रेखाश्यों का घछुत्त ज्यों ज्यों वह प्रुषों के निकट दोती [1 जाती है ध्यथषा पिपुषत्‌ रेप्या से दूर द्वोती जाती है छोटा झ्ैता (6, जाता दे। मि० भ्रू०--२




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now