ज्ञान का स्वरूप | Gyan Ka Swaroop

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Gyan Ka Swaroop by नीलिमा सिन्हा - Neelima Sinha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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21 चान हैं और हमारा पान मात्र उड़ें प्रकाशित करता है। यह मत अ्रचलित वाल्तववाद का है जो यह मानता है कि वस्तु का जँसा ज्ञान हमे होता है, मघायत वस्तु वैसी ही है। इस प्रकार के प्रतिबद्ध वास्तववादी दशन में भ्रम का वाई स्थान नही रह जाता, फलत आ्रामाकर भ्रम की व्याख्या ख्यातिवाद से करते हुए भ्रम वो भी यथाथ कहते हैं।?० प्रामाकर के अनुसार अनधिग्रतत्व के लक्षण के कारण प्रमा की परिभाषा में अव्याप्ति दोष हो जाता है। वे असदिग्धता के उल्लेख को भी अवाबश्यक बहते हैं और उनके अनुसार यथायत्व को स्वीकार १रने से ख्यातिवाद का खण्डन होता है। भत प्रामाकरो ने प्रमा को मात्र अनुभूति के द्वारा परिभाषित किया है। उसके अनुसार स्मति इस दष्टि से देध ज्ञान नही है क्योजि स्मृति मे जो ज्ञान उत्पन होता है वह किसी साक्षातत चस्तु के द्वारा नही होता है बरन्‌ पूव सस्कार के कारण होता है।7/ इस प्रकार प्रामाकर मीमांसको वे अनुसार देध ज्ञान अनुमूति है। यहा अनुभूति का अथ मात्र दतद्धियाय सानिकप जय ज्ञान नही है। यहा 'अनुमूति” का प्रयोग व्यापक है। वे अनुमान, उपमानादि जय ज्ञान को भी अनुमूति कहते हैं। परतु वंध शञान को मात्र अनुभूति से परिभाषित करने मे मीमासको के समक्ष कठिनाई है। उनसे यहू प्रश्न दिया जा सकता है कि अनुमूति वे' अ-तगत वे मात्र साभात अनुमूति को रखते हैं या असाक्षात अनुमूति को भी रखते हैं ? विश्चय ही जब प्रामाकर अनुपानादि को प्रमाण की श्रेणी मे रखते हैं तो वे अक्षाक्षात अनुभूति को भी श्रमा मानते हैं। परातु असालात अनुभूति की प्रमा मान लेने से स्मति को भी वैध ज्ञान मानना पडेगा | अयोकि स्मति में अनुमूति ता हमे होती हो है, अंतर इतना है कि साक्षात प्रत्यक्ष में अनु- भूति साक्षात वस्तु की होती है? और स्मृति मं अनुमूति वस्तु के सस्कार की होती है। वस्तु का सस्‍्कार भी वस्तु द्वारा ही उत्पन होता है, अत स्मृति भी अताक्षात प्रत्यक्ष की श्रेणी म भा जाती है। ऐसी स्थिति मे प्रमा की श्रेणी से उत्तका बहिष्कार उचित नही प्रतीत हाता है। अगर असाक्षात अनुमूति को प्रामाकर अनुमूति की श्रेणी से हटाते हैं. तो अनु- मान की प्रमाण कहना उचित नही होगा। क्योकि अनुमान व्याप्ति पर आधारित होता है ओर व्याप्ति असाक्षात अनुभूति पर आधारित होता है 7 नादक्शोर दर्मा ने पायमारथी द्वारा की गई इस आलोचना को निराधार कहा है।४ उनके अनुसार स्मृति की उपस्थिति मात्र से कोई अनुभूति अभ्रमा नहीं होती। मे छत है गिगति उपस्थित मात्र रहती है कि तु इत अवस्थाओ मे इंद्य वस्तु से सम्पक 1 इस मत के परीक्षण वे लिए अनुमान और व्याप्ति का विश्लेषण करता पडेगा। एक उदाहरण लें--पवत पर घूमज्र दखकर अग्नि का अनुमान करते हैं। इसमे कितनी बातें हैं ? (क) पवत पर धूजम्र का प्रत्यक्ष--अर्थात्‌ झीद्रय से वस्तु का सम्पक, (ख) व्याप्ति--जहा जहा घुआ है वहा-वहा आग है, और (य) इस आधार पर अनुमान--- परत पर अग्नि है अर्थात्‌ अग्नि से ईर््रिय के साक्षात सम्पक के अभाव मे ही निणय | अब इस आपत्ति के विरुद्ध आपत्ति का अवसर यही से प्रारम्भ होता है । (क)




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