श्रमण संस्कृति | Shraman Sanskrati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सखर्ण- द्वीप दरिक्रष्ण प्रेमी अतस्‌ फे गायक जन ग्रिय माट्यकार मुलेखक कूँ खड़े थे आसमान फो दूने वाले, उनको देखा। फॉका अपनी कछुटिया में, खिंची व्यया की तीखी रखा। सागर के उस तद से दुनिया स्वर्ण लिए आती दै। । देख देख फ्गाला की जलने लगती छाती दै1 कल तक थे जो सखा इमारे आज न हमसे द्वाथ मिलाते। देख फ्टे से वस्त्र हमारे सफ्रत फरते, हँसी पड़ाते। २ न पड़ा, “जगत से लड़फर स्व लूट फ्र ले आउँगा। 1 रज्ञां से सज्जित कर निरख निरख कर सुख पाऊँगा।ए? जोलीं, “प्रिय, विभप प्राप्ति की घुन मे तुम सतोष न खोना। गंवा पर रह जाता दवू जीवन में शेना ही रोना। प्रियतम+ सोया तो फ्ठोर है, उसको पाकर क्‍या पाथओोगे?े ऋऋ द# 5८६ ७० सं ७ है




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