गांधीवाद समाजवाद | Gandhivad Samajwad

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Gandhivad Samajwad by राजेन्द्र प्रसाद - Rajendra Prasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२० गधधीवाद : समाजवाद गत कंणडे शांत हो जाने के कई उदाहरण अनेक परिवारों के इतिहास में मिल जाय॑गे । अगर गांधीवाद में कोई भारपृर्चंक बताया हुआ न्याय है तो यह 'प्रिवारन्याय' है । इसके अतिरिक्त जो कुछ और विचार-धारायें, योजनायें अथवा कार्य क्रम हैं, वे सब इसी का खयाल करते हैं कि देश की मौजूदा हालत में क्या उचित है, शक्‍क्य है ओर व्यवहाय है | अगर गांधीवाद में खद्दर और ग्रामोद्योगो पर बहुत जोर दिया जाता है, या कल्लों पर कम क्ृपादृष्टि रकक्‍्ली जाती है, या उद्योग द्वारा ही पढ़ाई की बुनियाद डालने का काय कम पेश किया जाता है, तो उसकी वजह यह नहीं है कि गांधीवाद को करलें के प्रति-- चू'कि वे कत्ल हैं, इसी खिये- ऐतराज है | बल्कि, गाँधीजी मानते हैं कि देश की वर्तमान अवस्था मे सर्वोदय की ओर जाने के लिए और कोई दूसरी व्यवहार्य योजना नहीं है । अगर कलम की एक मोक से साम्यवाद की स्थापना हो जाय. तो साम्य- वादी शासकी को भी अनुभव हो जायगा कि करोड़ों जनों को स्वाभिमान- पूर्वक रोटी भाप्त कराने के लिए गाँधीजी के ही आर्थिक कार्य क्रम को चलाना होगा । इसी तरह, अगर गाँधीजी हरेक शख्स से आठ घंटे काम लेकर उसे आठ ही आने मजदूरी देना चाहते हैं, और यह न्याय वे चखों चल्वाने- वाली बुढ़िया से लेकर वाइसराय तक लगाना चाहते हैं, तो उसकी वजह यह नहीं है कि सानवजाति के भौतिक सुख का उनको इतना ही ख़याल ६ बल्कि उसका मतलब यह है कि अगर उनके हाथ में देश की पूरी- पुरी बागडोर हो और साथ ही दक्त और वफादार काय कत्तों हों तो निकट भविष्य में किसी हद तक समाज को पहुंचाने की वे हिम्मत रखते हैं, डसका यह नक्शा है। यह बात ठीक है. कि वे बहुपरिभ्रह और बहुभोग के आदर्श में विश्वांस नहीं रखते हैं, और अपरिग्रह और अमोग का आदर्श मानते हैं। लेकिन उन्होंने दरिद्रों के सामने कमी भी ये आदर्श नहीं रकखे । उनके लिए तो उनका सब कार्यक्रम उनके भौतिक सुख




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