कविरत्न सत्यनारायनजी की जीवनी | Kaviratn Satyanarayan Ji Ki Jeevani
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
244
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about बनारसी दास चतुर्वेदी - Banarasi Das Chaturvedi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १५, ):
6 सच तो यह है कि सत्यनारायणजी की यह जीवनो पं०
चयनारसीट/सज्ी दी लिख सकते थे। ये कहने फे सत्यनारायण
ली के शनेक श्रन्तरड़ और गाहे मित्र थे और हैँ , पए मिनता का
नाता चतुयंदीजी ने दी नियाद्या है। मानो मरते बक्ते सत्यनारायण
की आत्मा इनके कान में कह गयो थी :- फ
४ 39 - ६ 'याँतोसमुंददेखेकी होती हे मुदृष्बत सबको ।
तो त्प्र जानू मेरे बाद मेरा ध्यान रहे 1 ?
जीवनी लिखने फा उपक्रम करके चेत॒पेंदीजी प्रचासी-भारंत
चार्सियों फे पुराने रोजरोग में! फँसकर जीवनी के फार्य को
स्थगित कर बैठे थे, इस पर मंने तकाजे के दो तीन पत्र लिखकर
उन्हें. जीवनी की याद दिलाई, शीघ्र पूरा फरने फी प्रेस्णा को,
और पूछा कि फ्या इस पचडे में पड कर सत्यनारयण के भी
भूल गये ? इसके उत्तर में जो पत्न उन्होंने लिखा, उसके एक एकः
शब्द से नि स्पार्थ प्रेम, गदरी सद्ृदयता और सश्ची , सहाजुभूति*
डपकतो है। में उस पत्रका कुछ अश इस अभिप्राय से यहाँ
उद्धृत करना चाहता हैं कि मित्रता फा दम भरनेवाले और वात
चात पर सहृद्यता की डींग मारनेवाले' हम छोंग उसे पढे,
सोचे और द्वो सके तो कुछ शिक्तां भी अहण करें। ( चंतुबंदीजी
“दोस्त फरोशी” के लिये मुझे क्षमा करे )। भारतीय हृद्य!
से लिखा था --
>««>संत्यनारायएं के अन्य मित्र उन्हें मसले दो भ्रलल जायें, पर मैं कभी
नही भ्रूल सकता 1 जिंतनो 'लाम उनकी” जीवनी से मुझे हुआ है, उतना
User Reviews
No Reviews | Add Yours...