जीवन चरित्र का प्रथम भाग | Jeevan Charitra Ka Pratham Bhag
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
324
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)चेराग्य उत्पत्ति | १३
रखो उसमें वेसीही गन्धि होजाती हे इस लिये श्रीमती
पारवतीजी महाराजने स्वयमेव मिथ्या सांसारिक
सु्खोंकी इच्छा न करके; अपने माता पिता से योग
वृत्तिके घारण करनेकी आज्ञा मांगी क्योंकि जैन
धर्म्म॑ के नियमों के अनुकूल बैरागी को अपने माता
पिता की आज्ञा लेना आवश्यक है. आपके माता
पिता आपके मुखसे इन वचनोकी सुनते ही अर्धार
होगये किन्तु कौन चाहता है कि उसके हृदयका टुकड़ा
जो इतने प्रेम और परिश्रम से पाछा गया हो, साथ
हो जावे और सांसारिक सुखो से वेचित रह जावे
तथा उन कठिनाइयों को सहे जिनको कि साधुदी
समझसकते ओर सहसकते है तथापि आपके पिताजी
बोले पुत्रि । अभी तेरी आयु छोटी है जेन नियमा-
नुसार संयम वृत्तिके साधन वहुत कठिन है,तू इन कष्टो
को केसे सहन कर सकेगी ओर तूने साधु वचनकर
लेना ही क्या है खाओ, पीओ, खेलो. अच्छा घर
देखकर तेरा विवाह कर दिया जायेगा वस सावधान
रहे ! फिर कभी साधु वनने का नाम न लेना
परन्तु श्रीमती पावतीजी मंहाराजका हृदय वैराग्य
की तरल तरंगो से तरांगित होरहा था इसलिये हाथ
जोडकर बोली पिताजी सांसारिक सुख तो अज्ञा-
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