साहित्य चिन्तन एवं समीक्षा दृष्टि | Sahitya Chintan Evm Samiksha Drasti
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
90
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)छुबतजी का सौदयश्ञास्त्र | १९
रहता है। वस्तु-मौदय की भ्रतीति तभी होगी जब बीच वा विधान' ठीक हांगा,
अयया विपय वस्तु की सुदरता के व्यक्त न हो पान वा खतरा पैदा हो जाएगा । इस
महत्त्वपूण विदु का 'शुक्लजी ने यह एक वाक्य म चलता कर दिया है। उस पर यहा
जितने विस्तार से लिखना चाहिए था, नही लिखा है। इसका कारण शायद यह है थि'
उनकी रुचि मुख्य रूप से वस्तु-सोन्दय मं थी, विधानगंत सौदय म नही । शुक्लजी पे
बाब्य म कल्पना की भूमिका वो यदि समुचित महत्त्व दिया होता, तो वे विधानगतत
सौदय को गौण नही मानते । यह मानते हुए भी कि “काय वस्तु का सारा रूप विधान
कल्पना वी क्रिया से होता है, उहोत कल्पना के काय को प्रस्तुत और अप्रस्तुत के
विधान म विभाजित कर दिया है। कल्पना की सश्लिप्टता भ्रस्वुत् अप्रस्तुत जसे
विभाजन वा अतितमण कर सकती है--पह बात शुक्लजी वे ध्यान म होत हुए भी
उह स्वीकाम नही थी। जहा वे अलकारो को वाहरी सजावट की चीज मानते रहे, वही
“रूप कौ सृष्टि को सम्प्रेषण का साघन मानकर चल | कवि की कल्पना स्वप्म के निकट
पहुँच भक्ती है, इस सम्भावता को अस्वीकार न करत हुए भी शुक्लजी इस सम्भावना के
पिहिंताथ को स्वीकार नही कर पाए है। उहोन लिखा ह॑ कि “काव्य सवथा स्वप्न वे
रूप की वस्तु नही है। स्वप्न के साथ यदि उसका कोई मन्र है तो फेवल इतना ही कि
स्वप्न भी हमारी बाह्य दर दिया के सामन नही रहता और काव्य वस्तु भी ।” स्पप्ट है
कि स्वृप्म और वल्पना का यह सादृ*य बहुत स्थूत और सतही है । दोनो तक वा अति
ऋ्रमण बर जो अपूच दश्य उपस्थित करन है, वह शुक्तजी को अमाय था। इसलिए
उहान कल्पना को प्रत्यत जगत बी परछाई मानत पर जोर दिया । उनके मतानुसार
“प्रत्यक्ष रूप विधान के उपादन से ही कल्पित रूप विधान होता है। प्रत्यल रूप विधान
वा आधार लेते हुए भी कल्पित रूप विधान तक का जतिक्सण कर अनग लाभासी रुप म
ढल सकता है और उस स्थिति म वह काव्य के काम को चीज बना रह सकता है,
शुक्लजी यह मानन को तैयार नहीं जान पडत्ते। काव्य म अनगलाभासी कल्पना की
सम्भावना की लक्ष्य कर उहान तिसा है. “इन ढाँचा को जेबर हम विलक्षण रग रूप
की वस्तुएं खडी कर सकते है पर यह स्पप्ट समझ रखता चाहिए वि' उन बस्तुओ कप
रूप रग प्रकृति से जितना ही दूर घसीटा जाएगा, उतनो हो बे वस्तुएँ कल्पना मे कम
देर दिषंगी । घोडे के मुह वाले किन्नर, पुखराज की चट्टाना और सोन की रेत वे बीच
बहती हुई नहियाँ, आग के बने हुए झ्वरीर एक क्षण के 1िए मन म आ सकत है, पर सोन
वी विडियो की तरह चट उड जायेंग” ('दाय का रूप विधान और वल्पना') । शुक्त
जी वी दृष्टि मे बाब्य वे काम वी वल्पना वही है जो सच्ची और गहरी अनुभूति”
उत्पन्न बर सबे। उन्होने लिखा है कि “वाव्य क प्रयोजन की कल्पना वही होती है जो
हृदय की प्रेरणा से प्रवत्त होती हे और हृदय पर प्रभाव डालती है” (काव्य|का रुप
विधान और बल्पना)।
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