कथा कहो उर्वशी | Katha Kaho Urvashi

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Book Image : कथा कहो उर्वशी  - Katha Kaho Urvashi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कथा कहो उबशी २३ मूतिधाता में छाटा-बडा तोनन्सों स उपर मू्तियाँ पड़ी हैं । इनत पही अधिव म्तिया गाहक ले गए । सिटकियाँ खुली है। छेनी वी ठस-्ठक से गुश शिष्य वी बात बाद नही हाती । मूर्तियों पर घूल वी तह जमती चली गइ । वही वही मकड़ी के जाये मूह चिडा रह हैं । यह सा देखवर चतु मुख मन हीमव हसत है कि धुल और मकड़ी का यही जगह प्रिय हैं। सूर्तिश्ाला वी सफाई से नी कहा अधिफ नई म्ृति की त्तराव का ध्याव रहता है | क्तिनी हो सफाई कस धूज भरा जमती है और मयडी भी जि ने छोडती | जिन मूर्तिया वां माहव ले गए उतवा याद सताता है । चतुमु् वाले मेरी मूर्तियाँ गहाँ भी हैं प्रसन्‍त रह ।! आजकल ता भाप मृति बचत ही नहा गृर॒दव ! ' सुपक झुम्वराया, 'मूत्ति पर मृति चड़ती चली जाती है और भूतिया पर घूल की तह । मति बेचना ही ठीक है। पसा प्राय ता जया बुरा है गुरदव ? “अरे थाही जमीन है भ्रपतां। दाल भाव चल जाता है । फिर क्या चिन्ता बे ? मूलि वस ही गत्य जाता हू जस शिशु माँ केशभ मे शारी रिक रूए धारण करता है / सलिए मूर्ति बचते दु स हाता है। गीलक्ण्ठ का आन दा । मैं बहुंगा भव ता तुम जोया का थुग है। उन्‍सासी बरस समर भोग चुत । ऐसे ही इतने दिन बठा रह गया । प्रव ता मुझ चच देता चाहिए। हंस मत कह! गुरृदव | में बहता है हमारी उमर भी आपयो लग जाए । भ्रव ता जाना ही होगा बेटा ! दस जरा नोलकणष्ठ झाउर त्रिमृति पूरी कर्दे।! तहा गुध्टव ! आपनी बाति तो अभी दूर-दूर फलयो 17 वीति वी भी भली कही, वटा” जस एक वास, अ्पजस अठारट बरस 1 की सिदुडकर वितनी छोटो है सकती है, पव कर क्तिनो बडी ! कला ता वही है जा जागृत होकर मूतिमान्‌ हो उठ जिसमे हमारी खोज झनुभव लेकर




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