मानवीय शक्तियों का परिचय और उनका विकास | Maanaviiy Shaktiyon Kaa Parichay Aur Unakaa Vikaas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मानवाय-विकास् सं० ३ हु गौ ऋ नो के लीलोपं दिखाता है. ऋषि घविस्मित होजाते हैं और उनकी भावना होती है केनेषित॑ पतति प्रघित मनः किस झन्तर्यामी देव की प्रेरणा से यह मेरा मन विदुत्‌ की भांति अपने विषय स्थान में पतन करता है । ऐसा कोन देव है जिसने इतना श्रद्धत यह मन बनाया | बाहर के जगत्‌ में जैसे विद्यत्‌ है एवं श्रान्तरिक सष्टि में यह मेरा मन है जसे बिजुली की चमक और उसका पतन च्तणान्तर में हो चिरुद्व दिग्देश में होजाता है प्व॑ यह मन भो च्तणान्तर में पूर्व से पश्चिम और पश्चिम से पूव में पहुंच जाता है । अह्दो तीघ्र गति इस मन में किसने श्र केसे स्थिर की । ऋषि का उक्त भावना से यद विस्पप्र सिद्ध हुआ कि मन में वैद्यत शक्ति है इसी लिए चेइ में कहा है कि - यस्मान्तृते किचन कमे क्रियते० जिस सन के बिना मनुष्य कुछ भा नहीं कर सकता यानि जिस मन की वैद्यन संक्रान्ति से सब कुछ किपा जाता है । वह मेगा मन एुम सामध्य चाला हो । तथा स्वृतिग्रन्थो में भी कहा है यन्मनता ध्यायति तद़ाचा वदति यद्ाचा बदति तत्कपेणा करोति बेदी उपन्तिषदों ब्मौर स्सृति-ग्रन्थों में मन की वृत्तियां जो २




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