प्राचीन हिंदी पत्र संग्रह | Pracheen Hindi-patra Sangrah
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18.26 MB
कुल पष्ठ :
394
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१ विक्रम को अपनी सुरक्षा में ले लिया और शासन-संबंधी सभी सूत्र उसके हाथ में आ यए। तत्पस्वात् नेपाल राज्य और अंगरेजी राज्य के बीच सीमा-संबंधी अनेक झगड़ें चलते रहे। १८०८ ई० तक गोरखों ने बुटवल शिवराज आदि स्थानों पर अधिकार कर अपने राज्य का विस्तार कर लिया था। १८०९ ई० में अंगरेजों ने गोरखों से युद्ध करने की ठानी लेकिन गोरखे उस समय युद्ध बचा गए और अधिकृत स्थानों से हट गए। १८११ ई+ में उन्होंने फिर बुटबल और बेतिया की सीमा पर स्थित कुछ स्थानों को हस्तगत कर लिया । बेतिया की जनता का कुछ गोरखा-विरोधी रुख देख- कर लॉड ह्ेस्टिग्क ने १८१४ ई० मे गोरखों पर आक्रमण कर दिया। गोरखों ने वीरभद्र के नेतृत्व में अपू्वन रण-कौशल प्रदर्शित किया और अंगरेज्ों को पूर्ण विजय प्राप्त न हो सकी । किस्तु अंगरेज़ सेनापति जनरल ऑक्टरलोनी को जो लुधियाने से वा था सफलता भिली और उसने सेनापति असर को हरा दिया। नेपाल सरकार ने १८१६ ई० में सिगौठी की सचि स्वीकार कर ली । इस संधि के अनुसार नेपाक राज्य ने तराई पर अपना अधिकार छोड़ दिया और कुमायूं पर अँगरेजों का स्वत्व स्वीकार कर लिया। अब एक अँगरेज रेजीडेंट भी नेपाल की राजधानी काठमाण्डू में रहने कगा। सिंगौली की संधि द्वारा अँगरेज्ञों को अनेक महत्त्वपूर्ण राज- नीतिक लाभ प्राप्त हुए। श्टरर ई० में भीमसेन थापा के विरुद्ध विद्रोह के चिल्ल दुष्टिगोचर होने लगें। १८३९ ई० में थापा-वंश का अस्तित्व मिट गया। उसके बाद तो अंगरेजों का चिरोध और भी खुले रूप में होने लगा। किन्तु १८५७ ई० के बिद्रीह में महाराजा जंगबहादुर ने अंगरेंजों की सहायता की। जद हु है ऊपर जिन ऐतिहासिक और राजनीतिक बातों का उल्लेख किया गया है उनका सीधा सब प्रस्तुत संग्रह में संकलित सामग्री से है। हिंदुई शब्द के प्रयोग दास- प्रथा पर प्रतिबंध लगाने और पिंडार्यों की दृष्टि से उदाहरणाये क्रमदा पत्र-संझ्या ० १२९ ११६ और १३२ देखने थोग्य है। कुछ पत्र ऐसे भी हैं जिनका सतिहासिक या राजनीतिक दृष्टि से कोई महत्व नहीं है (जेसे जिला विहार की कवहरी में पैदा रामलोचत दारोगा का सुकदसा ) । किन्तु इन सभी पत्तों इक्रेरारनामों सनदों आदि का भाषा के अध्ययन की दृष्टि से महुन्व अवश्य है। इनमें खड़ीबोली के साथ हिन्दी की कुछ अन्य बोलियों के मिश्रित रूप मिलते हैँं। अधिकांश पत्रों की भाषा प्रधानतया खड़ीबोली है जिसे हिंदवीं कहा गया हैं (पृ० ९ ११) । कहीं-कहीं भाषा और छिपि का हीईुई हिडुई नाम भी मिलता है (पुर १५ ६९ ७० र१४) । भाषा की कुछ अन्यवस्था बेपड़ें तथा कम पढ़ें बोलनेवाछों तथा लेखकों के कारण भी साठूम होती है। अनेक पत्र लेखकों के द्वारा मौखिक ढंग से छिखवाएं गए हैं। इस प्रकार की खड़ीबीली का एक उदाहरण नीचे दिया जा रहा है फान्ख
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