अमिय हलाहल मदभरे | Amiy Halahal Madbhare

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Amiy Halahal Madbhare by गोपाल गोस्वामी - Gopal Goswami

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जिस गुणातोत ब्रह्म को सगुण रूप में समस्त देवों का प्रमु कशध घाता है, जि का श्रत, सइसफणों बाला शोप पाग सो न पा सका उसी मन मोशन की राधा ने अ्रधों मीनित नयन से ही वश में कर लिया। १ भगवान शकर (तीन नेम) ब्रह्मा (झ्राठ नेत ) विषतु या इद्ध ( सहसाक्ष ) और शेष नाग (दो हआर नेत ) ने भी जिदे भली प्रकाए पहों देखा, छठी मन मोहन को राधिका! ने श्राधि नयन से वश में कर लिया। २ निम्त के तीन पैंड तीनों लोक में नहीं समाते हैं उसे तुम अपने नैनों की पुतली में रस रही हो, दे राधिके, ठुम धन्य हो ! ३ तुमने तो गोवधेन पर्वत का न्ल पर धारण दिया दै पर मैने तमको आँख को कोर पर ही उठा रकखा है।|श्रव तुम्हीं बताओ, इम दानों में किसने श्रधिक महत्व का काये किया है ! ४ दे स्पाम, तुरयो बताग्रा डि तुममें श्रौर इन गोपियों में कौन बड़ा है? तुमने तो नख पर वेपल गिरि उठा रखा है और इन शोषिकाश्रों ने गिर ( गिरराज पर्वत सद्दित तुम्हें ) अपनी थार से घारण कर रक्‍म्दा है । ५ इन नयर्ना को दरान की भूख लगी ही रहदोी टैजा कमी नहीं पमिल्‍्ती । भत्ता, मिने मयनों के ने ज्ञाम है ने पट, 3 कैसे तृत्र होग ! ६




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