आधुनिक हिन्दी आलोचना : एक अध्ययन | Aadhunik Hindi Aalochna Ek Adhyyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
581 KB
कुल पष्ठ :
33
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about मक्खनलाल शर्मा - Makkhanlal Sharma
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दद्गात्मक' विकएस तथा ग्रठविरोध १५
करने मे वह समथ होती हू ।! इसम केवल क्रिया होती हैं प्रतिक्रिया न॒हदों होती ॥
आज वी वनानिक क्षोघें तथा भ्रणु आदि के सम्बंध भे अधुनातन मायताए
मास और ऐंगित्स वी भौतिकवाटी स्थापन श्रो को पुष्ट करती है; श्राज नवीन
औरिदी शोधो द्वारा यह घिद्ध किया जा चुका ह कि भर भी मिशथ्ित्त निर्माण ह जो
निरतर रुतिशील दता में रहता ह। यहाँ तक कि एक पदाथ ब॑ भणु दुत्तर पदाथ के
भाप के रूप मे परिवतित किए जा सकते हैं ।२
भूत की गति का अध्ययन समय और स्थान वी सीमा म॑ क्या जा सकता
हू । सभी पदाथ तथा शरीर जो विश्व म॑ स्थित हैं - गुय मे एक निश्चित स्थान पर
स्थित हैं। वे एक दूसरे से एक निश्चित दूरी तथा स्लरीमा में है। घूमते वाले पदाथ
और शरोर का एक निश्चित माग हू ।* भूत का स्थान के साथ वही सम्बाध हू जो
गति के साथ ह् तथा गति कय भूत के साथ ह। भरूत्र भोर स्थान अ्रविभाज्य हैं 1
सामाय वस्तु शरोर तथा विश्व मे मुख्य ग्रतर यह हू कि प्रथम का प्रारभ और भर त
हू हिलीय श्रनात झौर भनादि हू । भूत भ्रोर स्थान के समान ही स्थाव भर समय
भी एवं दूपरे से सर्म्दा घत हू 7 आइस्टीन जसे महान वज्ञानिक ने श्रपने सापेक्षता
याद द्वारा यह धिद्ध कर टिया है कि स्थान (59206) भ्रूत सं सयुकत हू । इससे काल
की निरपक्षतावादी मायताए सर्डित हो गई हैं। समय और स्थान से बाहर कुछ भी
ध्थित नहीं है । समय भौर स्थास सावेतिक हू (९ ऐंगिल्स ने वतानिक मायताझ्ा के
मिद्ध होने से पूव ही इसे कह दिया था।” भौतिववाद विान और अभ्यास को
आ्राघार बना कर झाग चलता हू ! उसकी म/यता हू कि इस प्रवार धीरे धीरे प्रति
भ्रीर विश्व के सारे रहस्पो से हम परिचित हो सकते हैं। इस दुनिया म ऐसा कुछ
भी नहीं ह जिस ज ना न णा सकता हो 1 यह ठीक है कि प्राज जो कुछ हमे ज्ञात
हूं उसवी अपेशा भ्रचात बहुत भ्रधितः है। इस विषय मे व श्राशावा्ी हैं ।*
दद्वात्मक विकास तथ। श्र-तविरोध
मात्रस तथा ऐंगिल्स ने विज्ञास का प्राघार दृद्ात्मकक भौतिकवाद को माना
है। विकाप्त के सम्ब'ध में मूनत जो सिद्धातत प्रतिपादित किए गए हैं। उनके अनुसार
प्रह्वति तथा समाज में विकास उाउ (1८७०) के द्वारा होता है। य उद्चाल क्रम
सेन लयर अनन्त ब-न ८८9८० बम नप८+-ररथ८८५
3 के साइथेड 191बोल्टाय05 ० द्ाणट.. 9986 107
2 वब॑]लइ९४ १० 11टलाएड ० सद्ाप्ा८. 9886 12
3 फणावबधाध्याधरो5 ० कैविड़ाइप 1 ल्यागराता 2426 33
3 शव 9 37
5 708 9826 38
6 8४ # 38
7 8 208०५ एक्षल्ट्व८5 ए वाट छु्8० 82०
8 3 इप्राव छागव्णाणवं कैक्षराबाडय ए88० 20 21
User Reviews
No Reviews | Add Yours...