संस्कृत - निबन्ध दर्शिका | Sanskrit Nibandh-darshika

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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संस्कृत निबन्ध-दशिका जी (श्र) पुकारना नाम रखना बनाना सोचना चुनना नियुक्त करना श्रादि पूणण विधेयक सकमंक क्रियाओं के कमवाब्य में भी यही नियम लागू होता है । जेसे-कुछरो व्याश्र कृत (हितो० ४ )--कुत्ता ब्याप्र बना दिया गया | निय॑ं मूखों मन्तव्यः वह मूर्ख नहीं समभा जाना चाहिए इत्यादि | १३--जब तर द्वारा संयुक्त दो या दो से श्रघिक संज्ञापद कत्तां होते हैं तब क्रिया संयुक्त कर्ता पदों के वचन के शझ्रनुसार होती है । जैसे-- तयोजरुहतुः पादान्‌ राजा राज्ञी च मागधी ( रघु ०१1५७ )--राजा श्र रानी मागधघी-- दोनों ने उनके चरणों को पकड़ा | (अर) जब संज्ञाएँ एक साथ नहीं ग्रहण की जातीं बल्कि प्रत्येवः श्रलग- अलग समभी जाती हैं अथवा वे सब एक साथ मिलकर एक विशेष-विचार व्यक्त करती हैं तब क्रिया एकबचन में ही प्रयुक्त होती है । जैसे--न मां त्रातु तातः प्रभवति न चाम्बा न भवती । (मालती ०२)--मेरी रक्षा करने में न तो पिता जी समय हैं न माता जी श्रौर न श्राप ही । पटुत्व॑ सत्यवादित्वं कथायोगेन बुध्यते (हितो० १9--योग्यता श्रोर सत्यवादिता का ज्ञान बातचीत से होता है । (ब) कमी-कभी क्रिया सन्निकटतम कर्त्ता पद के अनुसार होती है और अवशिष्ट कत्ता पदों के साथ समभक ली जाती है । जेसे-श्रहश्र रात्रिश्च उसे च सन्ध्ये घर्मोपि जानाति नरस्य इत्तमू । (पंचतंत्र १४) दिन श्र रात्रि दोनों संध्या और धर्म भी पुरुष के आचरण को जानता है | लैटिन माषा में भी इसी प्रकार होता है--(श्र) ८0005 ए16८65808- छुप€ 20501 समय श्र आवश्यकता की माँग । किपघि् ८६ घाएए € दंड ८दयू्पड 68? एक लड़की को श्र लड़कों में से एक को जेल में डाल दिया गया । १४-- अथवा द्वारा संयुक्त एकवचन कर्त्ता पद के लिए एकबचन की क्रिया प्रयुक्त होती है । जेसे-- रामो गोविन्दः कृष्णो वा गच्छुतु--राम झथवा




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