सिंधी जैन ग्रंथमाला | Sindhi Jain Granthmala

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Sindhi Jain Granthmala by श्री यशोविजयजी - Shree Yashovijay ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सिंघी जैन ग्रन्थमाला जैन झागमिक, दारैनिक, सादिलिफ, देतिधासिझ, फथास्मझू- इट्यादि विविधविषयगुम्फित प्राकृत, संस्कृत, अपक्श, प्रादीनगूजर, राजस्थानी णादि नाना भापानियद यहु उपयुक्त पुरातनवाध्यय तथा नदीन संशोधनाव्मक सादिश्यप्रकाशिनी जैन अन्यायठि । कठ्फतानिवासी सर्गल श्रीमद्‌ डालचन्दजी मिंघी गेशिपप्पस्ततिनिमित्त तपुत्र श्रीमान्‌ वहादुरसिहजी सिघी फेक संख्यापित तथा प्रकाशित >> 632५९१७--..- सम्पादक तथा सशालक मिनविणय मुनि ( सामान्य समासद-माण्डाफर प्राव्यदिद्या रंशेशयत मन्दिर पूना, तथा गुजतत सहिससमा भद्मदाबाद; मूतपुकेचार्य-गुजणव पुरातरूदमत्दिर भहमदजाद; जैनवाइमयाघ्यापक-विश्वमारती, शन्तिनिकेतन; प्रकृतमणादिल्रधानाध्यापद-भारतीय विद्या भवन, बम्बर; तथा, जैन सादिससंशोधक ग्रन्यावद्धि- पुरतस्वमन्दिए अन्थावद्ति-माजीय दिलद्या प्रम्धावक्ति-दाशा प्रशित संछत-प्राइत-पारी- अपफ्रंशशआदीनगूर्ज-हिन्दी-भदि नाता मषामंय-अनेकनेक ग्न्प संशेष्-छा्पाइक । ) अन्धांक ह$; मूल्य रू. 8-८-० प्रकाशन-कतो 6 बाबू श्री राजेन्द्र सिंहजी सिंधी सिंघीसदन; ४८, गरियाहाट रोड; पो० वालीगंज, कलकत्ता स्थापवाब्॒द ] सर्वाधिकार संरक्षित [ वि. से. १९८७




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