मानव और उसके जीवन की अवस्थाएँ | Manav Aur Usake Jeevan Ki Avasthayan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
238
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)29
क्भी-कभार व्यक्तित्व बे! विश्रास मं सामाजिय वातावरण वी भूमिवा पर
सही रूप से बल ?त हुए भी इन मनोविचानवेत्ताओं न सामाजिक वातावरण ने
प्रभाव को प्रत्यक्ष रूप स मन के विवास मे' साथ सयुकत कर दिया । इसने निविवाद
रूप से कार्यों की वास्तविक दशा वी सरलीक्षत कर दिया जबकि वातावरण के
प्रभावो वे अनिवार्य स्वरूप से सम्बंध रखनेवाले प्रस्ताव, जिसके अनुकूल किसी
की होना चाहिए, ने व्यक्ति को सामाजिक “मशीन मे एक 'दाँते' वे रूप मे परिणत
कर दिया । इस विधय में कोई भी चरम समाजशास्त्रीयकरण तथा चरम जीव-
विज्ञानीक्रण बाली स्थितियों को देख सकता है। दोनो ही अवस्थाओं में जीव
विज्ञान सम्बधी (आनुवशिक) अथवा वातावरण सम्वधी कारक (छोटे दल,
समुदाय, वग), जैसा भी हो, समार्भिरप हो जात है, और बे मानव व्यक्तित्व वे'
विकास मे, जिसे स्वय को एक एसे निष्क्रिय प्राणी की भूमिका सौपी जाती है जा
भाग्य की तरगा के अनुकूल वनता है, अनिवाय अर्थात अवश्यभावी अपरिहायें
निर्णायक तत्वों के रूप भ प्रस्तुत क्यि जात हैं ।
किसी (व्यक्ति) की अनुक्लन की अवधारणा वे उस तक पर भी विचार करने
के जिए रुकना चाहिए, जो जीवोत्यत्ति विभानवेत्ताआं और सामाजिक उत्पत्ति-
विज्ञानवेत्ताओ के बीच समान रूप से तोकप्रिय है । इस विपय का बिद्ु यह है कि
अनुकूलन की अवधारणा के प्रयोग करन मे मानव की गतिविधि के प्रतिभासों
का परीक्षण एवं विश्लेपण करने की और अधिक लम्पे समय तक कोई आवश्यकता
नही है, क्याकि अनुकूलन के तक वे अनुसार उत्तरवर्ती का उस ढय से, जिससे
इसकी अवधारणा की जाती है, स्वतत्र वातावरण, नर्थात, विशुद्ध पाशविक
गतिविधि, के साथ विशुद्ध अतर्मुखी सन््तुलन म परिणत क्या जा सकता है।
उदाहरण वे लिए, दो सोवियत जीवविज्ञानवेत्ताओ अलक्सेर्ट सेवत्सोव और
ब्लादिमिर बैगनर ने पशुओ के मस्तिष्क के विकास की प्रक्रिया के अध्ययन मं
मनोवज्ञानिक प्रक्रियाओं के र्पान्तर वा, वातावरण के साथ 'सगठन के परिवतना
से रहित व्यवहार के पर्िवतनो के माध्यम से अनुकूलन के एक प्रकार के रूप मे,
विश्लेषण किया ।
प्रशुओ के बीच मे व्यवहार मे व्यक्तिगत परिवतना के, आतुवशिक अनुकूलन
सहित, विकास पर ध्यान देत हुए सेवत्सोव जौर तदनतर वगनर ने विश्वास व्यक्त
क्या कि मानव मत का विशिष्ट लक्षण अनुकूल होने वे कार्यों वा अवयव संस्थान
के लचीलेपन के विकास के साथ ऐसे सयोग मे स्थित है जिसके परिणामस्वरूप
मानव ने सस्कृति और सभ्यता के इत्रिम रूप से निर्मित वातावरण के अन्तगतत
अपने व्यवहार को पूण किया । इस प्रकार मानव को जीवित प्राणिया की अनुकूल
होने की क्षमता के विकास का परमोत्कप समझा जाता है। टः
जब मनोवैज्ञानिक विकास को शरीर रचना विज्ञान सम्बधधी और क्रियात्मक
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