भगवान रो रहा है | Bhagwan Ro Raha Hai

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Bhagwan Ro Raha Hai by सुशील गुप्ता - Susheel Gupta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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““अपवानि:आ खाजेगो ?3 तेरी बिड़फी ठकठकाऊंगा तू चौकत्ता रहना ।६ /ध 9७३.» कन्हाई के जाने के बाद भी देवब्रत काफी देर तक वही बड़ा-खंड़ी, उप्लेड़बुन मे वि फंसा रहा । कन्हाई के विनय'दा ने उसे क्‍यों इनाशेश बह केस-ऋम-माँ सकता है? ५ जए हीएस देवब्त को याद है, उसी शाम उसके बापू ने टोका था, “क्यों, रे; मंये वारते है? तेरा चेहरा इतना पीला क्यों लग रहा है ? रात को सोया नही ?” #ता+- “रात को देर तक पढ़ता रहा ?” #नान- घनके सवालों से बचने के लिए वह आखें नीची किये अपने कमरे वी तरफ चल दिया । मुकुन्द बाबू की परेशानी और गहरा उठी । इकलौता बेटा ! उसके भले-बुरे पर उनके वश देवू बे! नाना-मानी का सुनाम निर्भर करता है। अगर वही कही नालायक निकल जाये, तो समाज के लोग उनके नाम की खिल्लियां उड़ायेगे। मुकुन्द बाबू ने पत्नी से कहा, “सुतती हो, जी, अपने इस देवू की तरफ जरा ज्यादा ध्यान दो । दिनोदिन वह सूखता बयों जा रहा है? सारी रात ही क्या पढाई करता रहता है !” सुमति भी बेटे के रंग-ढंग देखकर, चिन्तित थीं। उनके भी कोई भाई नहीं था| इसलिए उनके भी मां-वाप के मन में खासा कष्ट था। जब देबू पैदा हुआ, उससे पहले ही वे दोनों परलोक सिघा र गये । उसके मा-बापू, उसकी साधो के बेटे का मुंह देखे बिता ही चले गये, इसका उन्हे बेतरह खेद था। अपनी पैतृक सम्पत्ति की देखभाल के अलावा, सास-संसुर की सम्पत्ति की देख-रेख का भार मुकुन्द वाबू पर ही आ पडा था | जब वे नही रहेगे, तो उनकी देखभाल की जिम्मेदारी, उनके बेटे देबू पर होगी । अत. उनकी भरसक कोशिश थी कि देबू सचमुच लायक इन्सान बने। इसीलिए वे हर पल उसे अपनी आखों के सामने रखते थे। उसका खाना, उसकी लिखाई-पढ़ाई, रातो का सोना-जागना, सेहत बस, इन्ही सब सोच-फिक मे डूबे रहते । तलया से ताजी माठली, छर की, माप का दूध-घी-दही वर्ग रह खिलाकर उसकी सेहत बनाने की कोशिश में जुटे रहते ॥ लेकिन अगर अपनी चेष्टा न हो, तो भला कोई किसी की सेट्त सुधर सकती है? ; उस दिन रास्ते मे अचानक अहमद साहब से भेंट हो गयी। देवब्रत के बापू ने छूटे ही पूछा, “देवू, कैसा चल रहा है, अहमद साहब ? आपका कहना वगैरह मानता है न?”




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