अर्थव वेद संहिता | Arthav Ved Sanhita

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Book Image : अर्थव वेद संहिता  - Arthav Ved Sanhita

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ #.) विचारों का स्मरण है । ९ थे में निराश पति का स्त्रीको नियोग द्वार पुत्र छाभ करने की सम्मति है। १० वे में पत्ती की कुछ भनिच्छा है १ १९ ये में पति की र्लरी को पुन आज्ञा है १२ त॑ में स्लरी की स्वाभाविक: लज्ञावश पुन, अनिच्छा है। १३, १४, में पुन्नोत्पादन में असमझ एुव महाभारत के राजा पाण्डु के समान रोगादि पीडित पति की पुन, भाज्ञा है। ऐसा व्यक्ति अपनी स्त्री को भी सगिनी के समान जान अपने शरीर के दोपा से खी के शरीर का नाश नहीं करना चाहिये, इस भाव से पत्नी को पृथऊ रहने का आइश करता है। १५ वे मे पत्नी का कटाक्षपूवक पति के हृदय को बात जानने के लिये यक्ञमात्र है। १६ ये में और भी स्पष्ट रूप से पति ने पुत्र छाम के लिये आवश्यक कत्तज्य का आदेश किया है । गृह्र्थ भादि के सामान्य कक्तदयों का वणन तो १४ व काण्ड मे ही दार दिया है । इस काण्ड में तो पृत्रार्थी खी पुरुषो के लिये ही आपदू- धर्म रुप नियोग का घणन जिया है। ऐसा ही महयि दयानन्द ने भी स्वीकार किया है । साधारण रीति से नियोग के नाना छाभो का घर्णन महपरि दयानन्द के बताये सरयाथ- प्रद्दाश ( ४थ समुटलास ) में कर दिया है। यहाँ इतना लिखना ही पर्याप ह छि--:-नियोग विधान से खियों ऊे दायभाग के अधिझार की रक्षा होनो दे । पति क झत्यु हो जाने पर डटसफ्ी जायदाद का अधिकार सी को होता ६ | यदि यद्द दूसर पुरुष से पुन विवाद करे तो वह अपने पहले पति की जायदाद को दूसरे पति के अपेण कर देंगी । परन्तु डस से॑े ऊँ देवर कर जेठ आदि सबन्पी उसे ऐसा नहीं करने दंगे । क्योकि घइ जायदाद उनऊे बाप-ढदादों का सम्मिलित है। विद्येपतया भूमि, मससान कोर पशु-सपत्ति रू एमा ही होना 2 | ऐसी दशा मेयातोंख्तरी दिप्ताः ही रहे या जायदाद का इक छोटे । यदि जायदादट को छोडती है नो ऋन्य पुरप के साथ विवाह करने पर मरी को शो हक अपने पूर्च




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