वैशेषिकदर्शन भाषानुवाद | Vaisheshikdarshan Bhashanuvaad

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Vaisheshikdarshnam by कन्नड मुनि - कणाद Muni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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| बैशेषिकद््शन-पक्रापान वाद क्योंकि वेदादि शास्प्त घमे का वणगन करते हैं, प्रस कारया छोक चन को प्रभाण सानता है ॥ का यदि शेदावि शाह्म में प्रभ्यद्य लीर मोक्ष के साथन घने का दर्णय स झोता तौ लोफ उस को निरथैक जान फर प्रमाण न दारता, पर्चा पेदादि शास्त्र में घने का निरुपण है और घने सनष्य के पेप्िज्ष आमुष्मिक कऋत्माण का साचन दे, इस खिये छोफ घेदाविषाचत्र मे प्रनाययवदाद्धि रखता 8 और रखनी चाहिये क्ली ॥ यही बात सीमसांसादर्शत १।११२ में कछट्टी गई हे क्लि-?” चोदयाश- छरणीएयों घसेः ? जिस की प्रेरणा घेद गादि शास्त्र करता है, वह घमे है । तथा सन्रु ९1१३ में भी यह्टी कएा हे क्षि ” घर्से जिन्मानमानानां प्रमाण पर्स अुतिः घसे के शिप्लाखुओं को पर॒स प्रमाया बेद्‌ है। रन ४ ६४ में न्ी कहर है कि- | आल... ह] शघ के + रे शी वेदीदितं स्थक कस सितल्म कयात्सन्त्रितः । 4 सह कव॑नू उथार्शरक्ति प्राज्ेलि परमा गतिसू ॥ अयौत्‌ छेद्म तिपादिस स्वचसे का फनुष्ठाल निनाणन्य होकर सदा परे स्‍्योॉकि यधाशर्ति ठस का करने बाश्ा परस गति सीक्ष) को प्राप्त ही जाता ऐ॥३॥ घेदादि शण्ोक्त चसे किस रीति बा ऋम से सनप्य व्वी सुक्ति का देवतु श्ै, सी वर्णन करते ््ं ् «यु ४-घन्नावशपश्सूमातु द्वव्णगणकर्णसासान्यावशेपसस- लायाना पदायाोना सच्वज्ञानाओ्लिफोेयसमू ध 9 0 ( घर्सेविजेपप्रचूतात्‌ ) पृथयविशेष से उतप्पा छणे, ( द्वव्यगुणकर्स नासान्य बिशेषलसवायानास्‌ ) २-द्वव्य २-युया ३ -करसे ४-भामाल्य ५ विशेष कौर ६- समतलाय ( परदायोनासू ) ६ पदार्थों के ( साधस्यंबरैथरू्यौच्यास्‌ + साथमूरय भीर घेचस्थ मे होने वाले (तरवज्ञानात्‌ तह्वप्जान से (निःश्रेयततम ) सं'क्त होता तरबचज्चान से मोक्ष होता है, यह फलिताउथे है | तश्वज्ञास का ९ विशे घम्मेविशेषप्रसूत ! है ऊबोत वह तक्त्तक्षान जो कि पर पवधिशेष से उत्पन्त ड्चा हे ४- विशेषण-विशेष्य सफ्यज्ञगन भे अल्वित यह है सि ” दृष्पगण- वेधस्यरेस्यासू तरण० द्ृव्पादि ६ पदों के साघर्य और सेंपसूवपे ते लच्छ




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