खरतरगच्छ का इतिहास भाग - 1 | Kharataragachchh Ka Itihas Bhag - 1
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
218
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about अगरचन्द्र नाहटा - Agarchandra Nahta
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आचार्य निनेश्वरसरि [5६]
क्या इमारे यहाँ गादियाँ नहीं १ इनके लिये भी गादियों लाओ । यह सुनकर आचार्य मिनेश्र ने
फट्ा--'राजन् 1 साधुओं को गादी पर तैठना उचित नहीं है ।' शास्रों मे कहा है---
भवति नियतमेवासयस. स्थाहिमृपा, नृपतिककुद | एतल्लोकहासश्र मिक्षोः ।
स्फुटतर इह संगः सातशोलत्वमुच्चेरिति न खलु मुमुच्षोः सगत॑ गद्कादि ॥
[िम्नह्व को गादी आदि का उपयोग करना योग्य नहीं है। यह तो शद्भार की एक चीज हे,
जिससे अवश्य दी असयम-सन का चांचल्य होता हैं । इससे लोक में साधु की हँसी होती है । यह
आसक्ति-फारक है और इससे सुखशीलता यठती है । इसलिये 'हे राजद ! इसकी दमे आवश्यकता
नहीं है ।]
इस प्रकार इस पद्य को अथे राजा की सुनाया । राजा ने पूछा “आप कहा निवास करते
हैं! तरिजी ने फहा--महाराज | जिस मगर में अनेक गरिपक्षी हों, वहाँ स्थान की प्राप्ति फैसी !
उनका यह उत्तर सुनकर राजा ने कहा--नगर के 'कर डि हट्टी! नामक मोहल्ले में एक वशहीन पुरुष
का बहुत बड़ा घर खालो पढा है, उसमें आप निवास करें | राजा की आज्ञा से उसी क्षण वह स्थान
प्राप्त हो गया । राजा ने पुछा--आपके भोजन की क्या व्ययस्था है ! छरिजों ने उत्तर दिया-महारोज !
भोजन की भी वैसी ही कठिनता है । राजा ने पूछा-आप कितने साधु है ? छरिजों ने कहा-अठारह
साधु हैं। राजा ने पुनः कहा-एक हाथी की खुराक से आप सब तृप्त हो सकेंगे? तय छोरिजी ने
फद्दा-मद्दाराज । साधुओं को राजपिएड कल्पित नहीं हे | राजपिण्ड का शास्त्र में निषेध है। राजा
बोल्ा-अस्तु, ऐसा न सही । भित्ता के समय राजऊर्मचारी के साथ रहने से आप लोगों छो मित्ता
सुलभ हो जायगी। फिर वाद-विय्ाद में विपक्षियों को परास्त करके राजा और राजकीय अधिकारी पुरुषों
के साथ उन्होंने वसति में प्रवेश क्रिया। श्रथम ही प्रथम गुजरात में वसतिमार्ग * की स्थापना हुई
३, दूसरे दिन पिपत्ियों ने सोचा कि हमारे दोनों उपाय व्यर्थ हो गये । अगर इन को यहा
से निकालने का और कोई उपाय सोचना चाहिये । उन्होंने सोचा-- राजा पटरानी के वश में है।
रह जो कहती है, वही करता दे | इस लिये किसी प्रफार रानी को प्रसक्ष करके उसके द्वारा इन्हें
* तुज्ञता कीजिये--
ततः अति सज्ज्ञे, वसतीना परम्परा । मदक्िः स्थापित इद्धिमश्लुते नाव सशयः ॥८६॥
( प्रमावक चरिव )
1 इसी विजय के उपल्क्त मे आचाये।जनेश्वर की पूर्ण एप कठोर साघुता के कारण इनकी परस्परा यहीं से
सुविदित-विधि-खरतर पक्ष के नाम से असिद्ध हुई। देसें--इसी का द्वितीय खण्ड और पिनयसागर
लिखित 'बल्लभ भारती? की प्रत्वावना
User Reviews
No Reviews | Add Yours...