खरतरगच्छ का इतिहास भाग - 1 | Kharataragachchh Ka Itihas Bhag - 1

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Book Image : खरतरगच्छ का इतिहास भाग - 1  - Kharataragachchh Ka Itihas Bhag - 1

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आचार्य निनेश्वरसरि [5६] क्या इमारे यहाँ गादियाँ नहीं १ इनके लिये भी गादियों लाओ । यह सुनकर आचार्य मिनेश्र ने फट्ा--'राजन्‌ 1 साधुओं को गादी पर तैठना उचित नहीं है ।' शास्रों मे कहा है--- भवति नियतमेवासयस. स्थाहिमृपा, नृपतिककुद | एतल्लोकहासश्र मिक्षोः । स्फुटतर इह संगः सातशोलत्वमुच्चेरिति न खलु मुमुच्षोः सगत॑ गद्कादि ॥ [िम्नह्व को गादी आदि का उपयोग करना योग्य नहीं है। यह तो शद्भार की एक चीज हे, जिससे अवश्य दी असयम-सन का चांचल्य होता हैं । इससे लोक में साधु की हँसी होती है । यह आसक्ति-फारक है और इससे सुखशीलता यठती है । इसलिये 'हे राजद ! इसकी दमे आवश्यकता नहीं है ।] इस प्रकार इस पद्य को अथे राजा की सुनाया । राजा ने पूछा “आप कहा निवास करते हैं! तरिजी ने फहा--महाराज | जिस मगर में अनेक गरिपक्षी हों, वहाँ स्थान की प्राप्ति फैसी ! उनका यह उत्तर सुनकर राजा ने कहा--नगर के 'कर डि हट्टी! नामक मोहल्ले में एक वशहीन पुरुष का बहुत बड़ा घर खालो पढा है, उसमें आप निवास करें | राजा की आज्ञा से उसी क्षण वह स्थान प्राप्त हो गया । राजा ने पुछा--आपके भोजन की क्‍या व्ययस्था है ! छरिजों ने उत्तर दिया-महारोज ! भोजन की भी वैसी ही कठिनता है । राजा ने पूछा-आप कितने साधु है ? छरिजों ने कहा-अठारह साधु हैं। राजा ने पुनः कहा-एक हाथी की खुराक से आप सब तृप्त हो सकेंगे? तय छोरिजी ने फद्दा-मद्दाराज । साधुओं को राजपिएड कल्पित नहीं हे | राजपिण्ड का शास्त्र में निषेध है। राजा बोल्ा-अस्तु, ऐसा न सही । भित्ता के समय राजऊर्मचारी के साथ रहने से आप लोगों छो मित्ता सुलभ हो जायगी। फिर वाद-विय्ाद में विपक्षियों को परास्त करके राजा और राजकीय अधिकारी पुरुषों के साथ उन्होंने वसति में प्रवेश क्रिया। श्रथम ही प्रथम गुजरात में वसतिमार्ग * की स्थापना हुई ३, दूसरे दिन पिपत्ियों ने सोचा कि हमारे दोनों उपाय व्यर्थ हो गये । अगर इन को यहा से निकालने का और कोई उपाय सोचना चाहिये । उन्होंने सोचा-- राजा पटरानी के वश में है। रह जो कहती है, वही करता दे | इस लिये किसी प्रफार रानी को प्रसक्ष करके उसके द्वारा इन्‍हें * तुज्ञता कीजिये-- ततः अति सज्ज्ञे, वसतीना परम्परा । मदक्िः स्थापित इद्धिमश्लुते नाव सशयः ॥८६॥ ( प्रमावक चरिव ) 1 इसी विजय के उपल्क्त मे आचाये।जनेश्वर की पूर्ण एप कठोर साघुता के कारण इनकी परस्परा यहीं से सुविदित-विधि-खरतर पक्ष के नाम से असिद्ध हुई। देसें--इसी का द्वितीय खण्ड और पिनयसागर लिखित 'बल्लभ भारती? की प्रत्वावना




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