लम्हों की सलीब | Lamhon Ki Saleeb
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
560 KB
कुल पष्ठ :
80
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about शीन॰ काफ॰ निजाम - Sheen. Kaf. Nijam
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(१४) लम्हों की सलीब
खुलूस-ओ-मेहर” का पकर दिखाई देता है
वो एक शणगर्स जो पत्थर दिखाई देता है
वी रास्ते मे जो श्रक्सर दिखाई देता है
है एक फूल पे नश्तर दिखाई देता है
ग्रगर हो जरें को भी कोई देखने वाला
तो वो भी मेहरे-मुनव्वर! दिखाई देता है
तू ही बता दे कि जाऊं तो फिर कहा जाऊँ
खुदा के बाद तेरा घर दिखाई देता हे
लह॒द३ की खाक पे सोया हूँ तो तम्राज्जुब क्या
थके हुए को तो बिस्तर दिखाई देता है
दिखाई देता है तुम को तो दरिया भी कतरा
मुझे तो कतरा समनदर दिखाई देता है
समे-हयातर को पी कर भी मुस्कराता है
“निज्ञाम' मु को तो शकर दिखाई देता है
3--नक+ २०» पा ५, ७७००-७०) +ककनयक
(१) प्रेम भौर कृपा (२) चमकता हुथा सूय
(३) क्ग्र (४) जीवन विप
नर ्>
User Reviews
No Reviews | Add Yours...