लम्हों की सलीब | Lamhon Ki Saleeb

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Lamhon Ki Saleeb by शीन॰ काफ॰ निजाम - Sheen. Kaf. Nijam

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१४) लम्हों की सलीब खुलूस-ओ-मेहर” का पकर दिखाई देता है वो एक शणगर्स जो पत्थर दिखाई देता है वी रास्ते मे जो श्रक्सर दिखाई देता है है एक फूल पे नश्तर दिखाई देता है ग्रगर हो जरें को भी कोई देखने वाला तो वो भी मेहरे-मुनव्वर! दिखाई देता है तू ही बता दे कि जाऊं तो फिर कहा जाऊँ खुदा के बाद तेरा घर दिखाई देता हे लह॒द३ की खाक पे सोया हूँ तो तम्राज्जुब क्‍या थके हुए को तो बिस्तर दिखाई देता है दिखाई देता है तुम को तो दरिया भी कतरा मुझे तो कतरा समनदर दिखाई देता है समे-हयातर को पी कर भी मुस्कराता है “निज्ञाम' मु को तो शकर दिखाई देता है 3--नक+ २०» पा ५, ७७००-७०) +ककनयक (१) प्रेम भौर कृपा (२) चमकता हुथा सूय (३) क्ग्र (४) जीवन विप नर ्>




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