एक नीच ट्रैजेडी | Ek Neech Traijedi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
146
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मिलाने चल देती है। उसने आस प्रडोस के मकाना पर नज़र फिरायी ।
कामकाजी लोग! के परे होने पर रोज धीमे धीमे यह गहन मायावी लोक
'इन गलियां, अहाता में स्ववमेव उग आता है---अलस बुदबुदाती माँओ,
थूप में पुराने ऊन की उधडी लच्छिया वी तरह पडी विल्लियो, और भुनगे
से भिनकते छोटे छोटे बच्चा वा रहस्यमय लोक, जिसे उसने अपनी लम्बी
बीमारी के दौरात की पहली मतबे जान पाया था, उन लम्बे छह महीनो के
दौरान जब वह अपने नीम मेंधेरे क्मर मे बगल की गलियो, कमरा और अहाता
से उठती इन अजीब ध्वनियों को सुनता पडा रहता था। दवाई के नशे और
बीमारी की कमजोरी के दरम्यान एक वेनाम भ्रूण की तरह तिरता हुआ।
न स्त्री न पुरुष, बस एक थक्री धिसी देह भर। रोज का वहीं भ्रम था।
खसर खसर थके विवाईदार पैरा को घिसटाती पुरानी चप्पलें, उठती या
चठनी टेहा वे! उचछब्रास जो चटखते जोडा और पुरान अनबूझ दर्दों स फूटते
हैं--हाय मरी अम्मा5 | फिर बतकहियाँ जिनके सुर पानी मे ऊभचूभ होती
यत्तज्ा की तरह ऊँचे नीचे होते रहते रहस्यमय स्त्री रोग, अफवाहे, अटकलें
पर कर्ण हूँसियाँ जिनका छूर नपुसक आत्रोश उसके लहू को स्याह कर
दताथा ख से खे जैसे लकडवग्पे हँसत हैं । तकिय बे' सहारे उठेगा
या दद स फठता माथा गेंधाते लिहाफ मे गरुइप किय वह इस दुनिया को
अपनी नाडिया में निरातर रिसिता हुआ पाता था। कभी उसे अचरज भी
होता था अपनी इलथ देह के बावजूद रह आये अपने दिमाग के चौकन्नेपन
पर से से खे । एक विकराल हेंसी जिसके पीछे कोई आनद या उछाह
नहा एक पूरी की पूरी प्रवचित जाति का इतिहास एक्शिश की तरह
धडऊता है--नीला गेंदला चैत-य 1 धप, धप घप।
यही बुछ क्षण हात हैं शायद, जब एक औरत पूरी तरह एक जीव होती
है। चताय अतमुखी, लापरवाह। वह रेबडी या मूगफली या सिफ घकका
दकर भी अपने मितमिनाते बच्चा को इस दम अलग हँकाल सकती है । वह
इस वक्त कसी की जिम्मेदार नहीं--न उल्ठ सीधे पडे जूता की न जूडे
बतय की न सुसे हुए विस्तरा की। इस वक्त वह मिफ दूसरी औरत
की आख़ो म सीधा देखती है, उन अतल गहराइया मे, जहा 7सरी अपनी
कबलीफ अपने अपमान और अपना जातोशझ व्यावुल सेरबी दहाडा गृजते
८
दोपहर श
27.००.
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