मैत्रेय | Metray

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Metray by गोविंद वल्लभ पंत - Govind Vallabh Pant

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अीनौ भाई ड्ह्‌ बूढ़े दादा बोल उठे-- मैं मी कहूँगा हकीस ली रूप को देखते को प्रौरू तुमने जरूर पेदा दीं। केश यत बुडिया के बेटे को मैं जीमिय ही देखना चाहता था। बड़े दादा दुर्स्द तारुजुन होगा मुझे करा मौ इस बात का घमष्ड सही कि उसका बेटा भेरी दवा से भक्छा हुआ | भक्छा तो बह मंसबान की ही दगा पौर प्राशौर्बाद से हुप्ना छिर्फे एक तिमित्त मैं बता झौर उस शुहिया को मरते समय सूसी देख सका--इसकी मुझे बडी लुसी है। 'तुमनै उसे किस दबच्चा से प्रच्छा किया था ?” उस्ची पूँये भौर मोती के मस्म के योग से । क्या तुम्हारी स्त्री ले भ्पमौ माला बमिदान क्र दी थी ? “शह्दी मैंते ढसे चुरा लिया।” “ऐसा क्यों किया ?ै” “माँदने से बहू कदापि ल देती । अब उसे 'बोरी मालूम हुई ठो कया हुसा र “मूठ बोसते कौ मेरी प्रादत सही | लव बह थोली मेरी माक्षा लो बई तो मैते कह दिया उसे पुँककर दबा में बदल हिया यथा । बे दोनो मेरे साथ गाली-गसौज करते को पैवार हो रए । उसी डिम भुझे बरीनी माई की सारी सुणीखता का मे मिल्षा। पैंसे उसे बताया एक निराघाए बुद्ध को मरते समय सूझी करना पत्ती के हर पहलते छे कईीं बढ़िया अीछ है| बूढ़े दादा यद॒पश होकर बाले-- 'कैकित इस मर्स को प्रथिक लोग कहाँ सममशे है ? “बस उसी दिल से हमारे जर के सीतर दरार पड़ गईं बूढ़े दादा इरार के एस पार जे दोर्सों थे प्रोर दरार के इस पार प्रकेशा मैं । कछ दिन तक मैरी भौर उनकी प्रापस में बातचीत सी बन्द रहौ। मैं इधर शुचर बाँदों में अक्ता काढ़ा कभी चूसने प्लौए कमी बोसार्ते का बहासा बनाकर | मेरी प्रमुपस्थिति में उन्हाते न बाने मेरे जिरद्ध बपाजया




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