भीगी हुई रेत | Bhigi Hui Ret

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Bhigi Hui Ret by चित्रा मुदगल - Chitra Mudgal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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था । एसा पता होता ता बाहर दो इंटो का झापडा छा लेते । “खर, चिट्ठी डलवाये दे रही हु गोमू से कि जठवाड़े बीच हम आ रहे हैं। दवाई लेके सो जाओ दो घडी 1” सचमुच कइ दिन बाद बावूजी को वडी गहरी नीद आइ। सिर ऊपर जो शहूती र झुका चला आ रहा था, लगा कि नही, अभी सिर पर छत वी छाया बवी हुई है. पाव तले की जमीन अभी ज्यादा बिखरी नहीं ह कोइ नया अवूज्ञा-सा सपना उनवी पूतलिया को धपकन लगा था | पं डूदते क्षणा का बोध / 27




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