प्रेम - प्रसून | Prem - Prasun
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
224
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
प्रेमचंद का जन्म ३१ जुलाई १८८० को वाराणसी जिले (उत्तर प्रदेश) के लमही गाँव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम आनन्दी देवी तथा पिता का नाम मुंशी अजायबराय था जो लमही में डाकमुंशी थे। प्रेमचंद की आरंभिक शिक्षा फ़ारसी में हुई। सात वर्ष की अवस्था में उनकी माता तथा चौदह वर्ष की अवस्था में उनके पिता का देहान्त हो गया जिसके कारण उनका प्रारंभिक जीवन संघर्षमय रहा। उनकी बचपन से ही पढ़ने में बहुत रुचि थी। १३ साल की उम्र में ही उन्होंने तिलिस्म-ए-होशरुबा पढ़ लिया और उन्होंने उर्दू के मशहूर रचनाकार रतननाथ 'शरसार', मिर्ज़ा हादी रुस्वा और मौलाना शरर के उपन्यासों से परिचय प्राप्त कर लिया। उनक
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शाप ३३
पर पहुँचूँगी, तो पतिदेव मुसकिराते हुए मुझसे गले मिलने के
लिये द्वार पर आवेगे । दस विधार से मेरे हृदय में गुट्ग॒ुदी-सी
होने लगी ।1 मे शीघ्र ही स्वदेश को चल पढ़ी 1 उत्कठा भेरे
ब्रदम बड़ाए यात्ी थी। में दिन भी चलती, रात भी चलती, मगर
पैर थकना ही न जानते थे। यह भाशा कि बह सोहिनी सूत्ति द्वार
पर मेरा स्थागत करने के लिये सडी होगी, मेरे पैरे। मे पर सा तागराएं
हुए थी | एक महीने की मज़्िल मैंने एक सप्ताह सें तय की । पर
शोक | जब मकान के पास पहुँची, तो उस घर को उेसकर दिल
ब्रठ गया थोर द्विम्मत न पढ़ी कि अदर कदम रकक्रूँ । मे चाौखट
पर यैठकर देर तक विलाप करती रही । न किसी चोकर का
पता था, न कहीं पाले हुए पशु ही दिखाई देते थे | द्वार पर धूल
इड़ रदी थी | जान पइ्ता था कि पक्षी घोसले से उड गया दे ।
फलेजे पर पत्थर की लिल रसफर भीतर गई, सो क्या पेखती हूँ कि
मेरा प्यारा सिंह श्रॉगन में भोटी-मोटी ज़जीरों से बैंधा हुआ है।
इतना दुर्वल् हों गया है कि उसके बूल्हों की हृड्डियाँ दिखाई हे रही
हैं । ऊपर नीचे जिधर देखती थी, उज़ाढ़-सा भाकूम छोता था । मुमे
देफते ही शेरसिह ने पूँछ द्विदाई ओर सहसा उनकी आँसे दीपक
की भौति चमक उ्ीं । भे दोड़कर उनके गले से लिपट गईं,
सममभ गईं कि नौकरो ने दुगा की । धर की सामग्रियों का कही
पता न था । सोनेचांदी के बहुमूएयय पान, फश आदि सब
गायब थे । हाय हत्यारे मेरे आभूषणों का सदूफ भी उठा के
रापु। इस अपहरण ने झुसाबत का प्याला भर दिया । शायद्
पहले उन्होंने शेरसिद्द को जकड़कर बाँध टिया होगग, फिर सूप
दिल सोलकर नोंच ससोट की होंगी ) केसी बिडबना थीं कि
घमे लूदमे गई थी और घन छुट्ा वेढी ! दरिद्रता ने पदन्नी बार
अपना भयकर रूप दिखाया।
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