मैं वही हूँ | Main Whai Hun
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
206
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about सुनील गंगोपाध्याय - Suneel Gangopadhyaya
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मैं वही हूँ २५
बड़े वृक्षों के तने को ठेकने के रूप में उपयोग में लाकर पत्थर हटाने से
भासानी होती है। साथ ही साथ कम लोकव॒ल की भी आवश्यकता
पढ़ती है। भल्ल ने तय किया है, चाहे जितना भो दिन क्यों न लगे,
पत्थर डाल-डाल कर वह नदी को पाटकर ही छोड़ेगा ॥
प्रवीणा ने बूकू से कहा, “बाद में वृक्ष काटने जाना । पहले सूर्य की
पूजा करता जा । वर्षा नही रुकेगी तो किसी दिन भोजन के अभाव में
मर जाना पड़ेगा ।”
बुक के पास इन्दर खड़ा था । वह वय को दृष्टि से अभी निहायत
तरुण है। अभी-अभी उसके मुख-मण्डल पर नवीन तृषराधि की तरह
दाढ़ी-मूंछें उगी हैं। उसमे कहा, “आकाश मे सूर्य दिखायी नहीं पर्डेगे तो
उनकी पूजा कैसे होगी ?”
वूक् बोला, “आंखों से विदा दर्शन किये हमने कया किसी दिन
उनकी पूजा की है ? सूर्य देव तो पहाड़ के उस पार के देश से इस ओर
भा ही नही रहे हैं ।''
प्रवीणा थोली, “तुम लोग यद्यपि उन्हें देख नहीं पा रहे हो लेकिन
वह सब कुछ देख रहे हैं। वह तुम लोगों की पूजा अपनो आाँखों से
अवश्य ही देख लेंगे और प्रसन्न हो जायेंगे | मैं तुम लोगों को बता रही
हैं, आज की दोपहर बीतते न बीतते पानी वरसना बन्द हो जायेगा ।”
वर्षा का वेग सचमुच हो कम होता जा रहा था। वर्षा के कारण
नदी को शक्ति में वृद्धि हो जाती है। इसका फल यही होगा कि भल्ल
का काम बढ जायेगा ।
भल्ल ने सभी को पुकार कर कहा, “आओ, तुम लोग सभी सूर्य की
पूजा करने,आओ 1
घर से सभी धाहर निकल आये और घरती पर घुटने टेककर बैठ
गये । बच्चे हो-हल्ला कर रहे थे, प्रवीणा ने उन्हे डाटा ।
गये की कमर में हमेशा एक सिंगा खोसा हुआ रहता है । उसने सिग्रे
में फंक लगायी । उस शब्द से दूसरे-दूसरे घर के लोग भी वर्षा की उपेक्षा
भू
User Reviews
No Reviews | Add Yours...