उत्तरगाथा | Uttar Ghata
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
136
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)चह देता क्यों नहीं ?
ईआ जी को वह हिलाती-इलाती है तो उन्हे जम्हाई भा रही है।
श्रीच मे उसे भी ख्याल नही रहा कि ईआ जी को मीद आा रही है। वह भी
गजव है कि अनाप-धनाप सोचते लगी थी ओर कहाती के बीच-बोच में
इधर-उधर भटक जाती थी। वह ईंझा जो को झकमोरकर जगातो है,
“अधूरी कह्दानी छोड़कर सो रही हैं कया ऐ ईआ जी ? राजा के बेटे और
डॉमली राती का क्या हुआ ? क्या राजा के बैठे ने रानी के कंगन का जोड़ा
लगाया 2”
ईआ जी बुदबुद्ाती हैं, हूँ ' हुं'*जहूर लगा दिया होगा, कनेआ।
परन्तु मुझे तो नीद आ रही है। बाकी कहानी कल रात मे सुनाऊंगी । मुझे
अभी छोड़ दे** १
“अच्छा, ईआ जी | आप तो सो रही हैं, लेकिन मुझे तो आपकी इस
अपूरी कहानी के चलते बिल्कुल नीद नहीं भा रही है।”
रंवती की आंखें सचमुच भंधेरे में खुली हुई हैं। चाहती भी है, तद भी
मींद नही आ रही है।
३
«जैसे रात्रि सम्पूर्ण गाँव को देत्य की तरह निगल गयी हो, कही
कोई भ्रावाज नही । टोले को बहिरा साँप ने सूँघ लिया है । दविखन की
ओर सियारिन फेकरती है । भयानक अकाल पड़ेगा या बरणा मै पूरा टोला
हू जाएगा, कौन जानता है।
अचानक रेवती चीछती है भोर ईआ जी को कस लेती है। बड़ा
अयानक सपना था, ईआ जी | वे” पहचान में नहीं भा रहे थे। दाँत निकल
आए हैं। ओौ्खें धंस गयी हैं। खालो बोलो उनको है, सारा शरोद राकस
का 1 हाय ईआ जी, मैं कैसे जीऊंगी***। 'वो' मुझे अत्र॒ पहले की तरह कहाँ
मिलेंगे'**कहाँ मिलेंगे'*ईआ जी ! ”
ईग्रा जी, गौदावरी की मह॒वारी को बुलाती हैं। “देख रे गोदवा की
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