श्रुतबोध | Shrutbodh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
41
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)२० श्रुववोध!श सटीकः ।
द्ुतविलसिबित छन्दः ।
अयि कृशोदरि ! यत्र चतुर्थर्क
गुरु च सप्तमक दशर्म तथा ॥
विरतिगं च तथेव विचश्वणे
दुतविलम्बितमित्युपदिव्यते ॥ ३० ॥
द्रतविछम्बितलक्षणमाह---अयि कृशोदरीति ॥ अयि
इति कोमछालछापे। विचक्षणेः पण्डितेह्ुतविछम्बितमित्युप-
दिश्यते । इति किम । हे ऋशोदरि ! यत्र चतुर्थक चेत्स-
प्रमक तथा दुशम इसमान्यक्षराणि गुरूणि सन्ति । विरतिगं
अन्य द्वादर्श शुरु स्यादिलर्थ: | कृशमुदरं यस्याः सा
कशोद्री तत्संबुद्धों । तदुक्त रल्लाकरे-“द्वुतविरूम्बितमाह
नभो भरों” ॥| ३० ॥ द्वुतविरछम्बितम्ू च० अ० १२,
ग० न, भें, भ, र |
अयि क्ृशोद्रि ! जिसमें चतुर्थ सप्तम तथा दशम ओर
अन्त्यज ( बारहवों ) यह अक्षर गुरु ( दीघ ) हों, उसको पण्डि-
तलोग द्रुतविछम्बित छन््द् कहतेहें ॥ ३० ॥
प्रमिताक्षराउन्दः ।
यदि तोटकस्य गुरु पश्चमर्क
विहित॑ विलासिनि ! तदक्षरकम् ॥
रससंख्यक गुरु न चेदबले !
प्रमिताक्षरेति कविभि! कथिता | ३१ ॥
प्रसिताक्षरालक्षणमाह---यदि तोटकस्येति ॥ हे
अबले ! कविश्निः प्रमिताक्षरा इति कथिता | किम । हे
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