जहावी तथा अन्य कहानियाँ भाग - 4 | Jahavi Tatha Anya Kahaniyan Bhag - 4

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Jahavi Tatha Anya Kahaniyan Bhag - 4  by जैनेन्द्र कुमार - Jainendra Kumar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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माला पहनायी और उसके चरणा में एक रुपया और घी से भरा,हुआ एव बड़ा दिया जलाकर रख दिया। फिरेवे लोग जान रू लिए आया “मागने मास्टरजी वे! पास अ ये जौर बोले, “मास्टरणी, हम्लीगे अब जाते हैं । मास्टरजी गदगद ही आय। और उहाने वस दाना बहा, आच्छा 17 बालूका ने पूछा, “मास्टरजी, वल बडी दीवाली को तो मास्टरनीजी आजायेंगी न २! माम्टरजी न वहा “हान दकता हय।/ बालक चले गय | तव महामहिम ने एक गहरा श्वास छोडा । वह उस बमर मे आये जिसम माला-चचित उनका चित्र रखा था। उसके चरणा में धी का टीपक आलोबित था। उसने देखा वह धाती चुतकर उसी भाति खूटी पर ठगी है| दूसरी खाट उसी भाति बिछी हू। उसका मन तो दोपा- रोपण करने कही भी जाता नहीं है। वह तो यही देखता है वि वह शब्या अप्रयुक्त ही रहती हू। यह बोती अनावश्यय रूप न णूटी से ८गी ही रहती हैं। वह खाद पर आकर एक्म्थ एक्टक देखता हुआ बठा रह गया । मद्धम ज्याति से वुझ्ल्बुथकर जवले तए दीपका वो वह देखा किया । एव- एक्पर वे सव बुझत घल गय । अवम्पित हृदय जार स्नेह के साथ जलता हुआ वट दिया ही उस कमर का प्रकाशित क्यि रहा जो उस विवाहित दम्पति » चरणों स लौ लगाये, उमुख बैठा था । महामहिंम बहुत दर तफ इसी भाति बैठा रहा। जाज उसने घर के विबाड भी बाद नहीं क्ये, खुले ही रहते दिय 1 धीरे धीरे उसकी आखा पर पलकें गिर सा चली । उसी समय उसे मालूम हुआ जैस कोई घर में आया है। लेकिन नही, कोई भी नही आया। वह पुरी तरह आख सोलकर बैंठ गया। बाहर दिये बुल चुके थे और निविड अमारात्रि फैली थी। शन घन गींद से उसकी आखें कपन लगी। क्तु वह चाहना है, जागे ही जाग आज इस रात को उस राव से मिला दे । वह्‌ सहसा उठा। उसने देखा--क्मर म आलोक फैलता हुआ वह दिया मद्धम हो गया हू । उसने सुना है. लब्मी दो तिशियां ने साधि क्षण मे ठीक रात्रि के मध्य मृहत में जाती द्‌। वह आयें ता घर को प्रबाशित प्रतीक्षा मे हो पायें । उसने बढ़कर दिये वी वचो - ्कू,




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