रात और दिन | Raat Aur Din

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : रात और दिन - Raat Aur Din

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about विनय कुमार - Vinay Kumar

Add Infomation AboutVinay Kumar

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
-रात और दिन छ (अमिट होती है और कर्मों के फन्न भोगने ही पडते है ॥' क्लडसका चिन्तन चलता हैं और वह सोचती हैं-- कर्म के फल से आज तक कोई नही बच पाया | चाहे एराजा हो या रंक | जिसने जैसा किया है, वैसा भोगेगा ही, एफिर भला मैं क्‍यों कर वंचित रहती । जो कुछ मैंने अपने पिछले जन्म में किया होगा उसका फल तो भोगना ही 'हपड़ेगा । लेकिन दु.ख इस बात का है कि यदि मेरी मृत्यु 1 हो जाती है तो मेरी आँख की ज्योति, फूल से कोमल इन क्षेदोनो कुमारो का क्‍या होगा ? यह भी सही हैं कि जो (आया है वह जायेगा। जिसने जन्म लिया है वह मरेगा जी | आज तक कोई असर-फल खाकर नही आया, लेकिन 1एसमय की बात है। पका आम दृक्ष से गिरे तो बात समझ गए भाती है किन्तु असमय अनहोनी होती है तो विचार पा रे के लिए बाध्य होना पडता है । घुझे भी एक न एक ष्‌ [र्दिंत तो जाना ही हैं। यदि यह जाना कुमारो के बड़े हो हराने पर और उनके वड़े विवाह हो जाने के पश्चात्‌ हो कीत्यों किसी प्रकार का दुःख नहीं। यदि मैं अभी काल अत वलित हो गई और महाराज ने पुनः विवाह कर लिया (एतों मेरे फूल से कुमार विमाता के अत्याचार कँसे सहन ( हर पाएँगे ?' विमाता के अत्याचारो से कुमारो को होने वाले दुःख हु की वल्पनता का आभास होते ही महारानी और अधिक (है! चिन्तित हो उठी | मुख म्लान हो गया, सांस तेज गति से रह पेलने लगी, आँखे अन्दर को धँसती सी प्रतीत होने लगी




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now