आबुजैन मंदिरों के निर्माता | Aabu Jain Mandiron Ke Nirmata

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Aabu Jain Mandiron Ke Nirmata by श्री ललित विजय - Lalit Vijay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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११ व्यालम लाकर वीरमतीका मन संकुचित रहा करता था, परन्तु भाग्यानि पूर्वतपसा किल संचितानि, काले फलन्ति पुरुपसस येह बक्षाः !! ॥ इच्छितसिद्धि ॥ “ विमलक्षमारके मामा कुछ व्यापारभी करते थे, और कुछ बतीमी करते ये, विमलकुमार मामाके खेतों तफे जा रहाथा, सम जाते जाते कहीं पोढ़ी जमीन देसकर उसने हाथकी कडीकी वहां भोंक दिया, छकडी सीधी नीचे न जाकर की होकर नीची चलीगई, विमलकुमारकों संशय पडा तो सने ऊपरसें कुछ माटी हटा दी, कुछही नीचे सोदनेपर एक रु धनसे पूण मिल आया उसे लेकर कुमार घर आया सने वोह चरु अपनी माताकों देकर उसकी ग्राप्तिका इत्ता- ते कह सुनाया । वीरपती वीरमती अतिशय असन्न होकर गैली-बेटा ! तूं भाग्यवान है पृण्यवानोंके लिये सुनाजाता है के पदे पदे निधानानि' मुझे निथय होता है कि इस झुभप्र- (हूपर जो तुझे निधान मिला है, सो इस निमित्तसें अवश्य जाना गाता है कि, श्रीदेवीभी पूणे सौभाग्यवती और पुण्यवती है, ग्रर इस उचम कन्याके घरमे आनेसें तुमारी कीर्चिमें बहुत [छ बृद्धि होगी, वेठा | जिनराजफा धर्म आराधन करना। जेससें तेरे पुण्यकी ओरमी पुष्टि होगी। धुष्कल धनके मिलनेस वीरमतीझा मन उत्साहित हुआ, ने भाईके साथ विचार करके विवाहकी कल सामग्री यार कराली, ठम्दिनके नजदीक आनेपर बीरमती अपने:




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