पार्वती | Parwati
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
624
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शअ्चेता
अर्पित की भू ने कुछुमों में अन्तर की निधि सारी ,
अम्घर ने अनन्त दोपों में शुचि आरती उतारी;
अन्तरित्ष ने घन - कलशों का अधष्य अनन्त चढ़ाया,
जीवत ने अनन्त रागों में मंगल - पघन्दल गाया।
अमित रत्न - निधियाँ बखुधा के निम्चत गर्भ में पलती ,
ज्योति आरती अयुत व्योम में स्व्रगे - शिखा - सी जलती ;
ध्वयनित दिशाये कर अन्तर के मन्द्र -घोष बन्दन से
अमित अमृत के अध्ये चढ़ाते मेव अनम्त गगन से !
तारों से आकुल हंग नभ में स्वप्त - सृष्टि के पत्ते ,
प्राची के पलकों में छवि के स्वगे अनन्त मचलते ;
ओस - बिन्दु बन व्योम - कुसुस - से उतरे भूपर तारे,
एक उडपा की समिति - लेखा ने कितने ' लोक सखेंवारे ।
नयतों की करुणा अवबनी के उर में रस बन आई ,
अधरों की आभा सुषमा -सी अखिल दिशा में छाई;
हुई कऋृताथे प्रकृति थी अदूभुत दिव्य नवीन सृजन से ,
उद्भिज के अंकुर में होती श्री रोमांचित तन से।
किस वसन्त के प्रथम प्रात में पुष्प प्रथम योवबन के
खिल उठते, रुचि अलंकार बन प्रकृति - सनोज्ञ मदन के ;
हरी - भरी रंजित धरणी के पुलकित' हृर्पित तन में
श्री का सुपसित रूप विकसता नव जाम्रत जीवन में।
आभा के अमिजात अमृत - सा डर - सागर में पत्ता
संसृति के कुसुमोंका रस हो पूर्ण फलों में फलता ;
शक्ति - बिन्दु - से जिनमें पल्ते बीज अनन्त सृजन के ,
हुये प्रकृति के पूर्ण चक्र में पूर्ण धर्म जीवन के।
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