दौलत विलास | Dolat Vilash
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
136
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about सरोजनी देवी जैन - Sarojani Devi Jain
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)# दोौलत-विलास छा
मनशान्तम्योमिटिसकल द्वन्द, 'चार्योखातगरस दुखनिकंद ॥
तात अब ऐसी करहु नाथ, बिछुरे न कभी तुम चरणसाथ ।
तुमगुणगण* कोनहिं छेव देव जगतारनको तुम विरद “एवं ॥
आतमके अहित विषय कपाय” इनमें मेरी परिणत' न जाय |
में रहों आपमें आपलीन”, सो करो होंहुं ज्यों निजाधीन ॥
मेरे न चाह कछु और ईश, रत्नत्रयनाधि दीजे सुनीश ।
सुझकारज के कारण सुआप, शिवकरहु हरहु मम मोहताप ॥
शशि श/न्तिकरन तमहरनहेत, स्वयमेव तथा तुम कुशलदेत।
पीधत पियूप ज्यों रोगजाय, त्यों तुम अनुभवतें सवनशाय ॥
त्रियुपनतिहंकालमकारकीय, नहिंतुमविन सुझ सुखदायहोय ।
मोउर यह निश्चय भयोआज .दुखजलाधि' 'उतारन तुमजहाज ॥
दोहा
तुमगुणगणमंणिगणपती '' गणत न पावरहिपार |
दोल'खल्पमति 'किमकहें नमहूँत्रेयोग' सम्हार।
[२]
जिनवरआननमभान ' निहारत,भ्रम-तमघान ' 'नशायाहे ॥ जिन०
अर कलह के लक न थे पक जन पथ सवलम कक पिन लक कम जप
£ उलझन,दुविवा। २ तुम्हारे गुणसमूह । ३ छेद्न उच्छेद-
'न ]। ४ यश । ५ ज्ो आत्माको कसे ऋ्ोव, मान, माया,लछोभ,
६ पवृतक्ति। ७ आत्म में लीवहोना। ८ चन्द्वमा। & समस्त | १०
-दुःखसमुद्र । १९ तुम्हारे गुणरूपी मणियोंके समूहक्रो गणधर
२२ ग्रिनते । १३ अल्प-वुद्धि । १४ मन, वचल,काय, की क्रिया ।
१० मुखरुपी सूर्य । १६ संसयरूप अन्धकार का पुञ्र।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...