दौलत विलास | Dolat Vilash

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Dolat Vilash by सरोजनी देवी जैन - Sarojani Devi Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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# दोौलत-विलास छा मनशान्तम्योमिटिसकल द्वन्द, 'चार्योखातगरस दुखनिकंद ॥ तात अब ऐसी करहु नाथ, बिछुरे न कभी तुम चरणसाथ । तुमगुणगण* कोनहिं छेव देव जगतारनको तुम विरद “एवं ॥ आतमके अहित विषय कपाय” इनमें मेरी परिणत' न जाय | में रहों आपमें आपलीन”, सो करो होंहुं ज्यों निजाधीन ॥ मेरे न चाह कछु और ईश, रत्नत्रयनाधि दीजे सुनीश । सुझकारज के कारण सुआप, शिवकरहु हरहु मम मोहताप ॥ शशि श/न्तिकरन तमहरनहेत, स्वयमेव तथा तुम कुशलदेत। पीधत पियूप ज्यों रोगजाय, त्यों तुम अनुभवतें सवनशाय ॥ त्रियुपनतिहंकालमकारकीय, नहिंतुमविन सुझ सुखदायहोय । मोउर यह निश्चय भयोआज .दुखजलाधि' 'उतारन तुमजहाज ॥ दोहा तुमगुणगणमंणिगणपती '' गणत न पावरहिपार | दोल'खल्पमति 'किमकहें नमहूँत्रेयोग' सम्हार। [२] जिनवरआननमभान ' निहारत,भ्रम-तमघान ' 'नशायाहे ॥ जिन० अर कलह के लक न थे पक जन पथ सवलम कक पिन लक कम जप £ उलझन,दुविवा। २ तुम्हारे गुणसमूह । ३ छेद्न उच्छेद- 'न ]। ४ यश । ५ ज्ो आत्माको कसे ऋ्ोव, मान, माया,लछोभ, ६ पवृतक्ति। ७ आत्म में लीवहोना। ८ चन्द्वमा। & समस्त | १० -दुःखसमुद्र । १९ तुम्हारे गुणरूपी मणियोंके समूहक्रो गणधर २२ ग्रिनते । १३ अल्प-वुद्धि । १४ मन, वचल,काय, की क्रिया । १० मुखरुपी सूर्य । १६ संसयरूप अन्धकार का पुञ्र।




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