धर्मसुधाकर भाग - 1 | Dharm Sudhakar Bhag - 1

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Dharm Sudhakar Bhag - 1 by स्वामी दयानन्द -Swami Dayanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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घंर्म। १्ज डिल्फलक छायाझरूपसे ससारके सभी 'मजहब' बने हे। जज्ञल्ली कोत्न भील आदि जाति योकी भूनप्रेत उपासना भी इसके भीतर है, ज्ञापानियोक्री पितृ पूजा भी इसी घर्मकें भीतर है, प्राज्रीन गेमन फेथोलिककी 87०६० डपासनारूपसे देवोपा सना तथा परारसियोक्रे ८01018॥010॥ शभ्र्मा तगंत समुद्र अग्नि आदि विभूति उपासनारुपसे देवोपसना मी दृरसीके सीतर है। भहम्मदीय ओर रेस सीथ भक्ति भाषप्रधान उपासना सी इसीकी छायासे बगी हुई है। 1७70७९॥॥ 579010०० आदि पाश्चात्य वैज्ञानिकौक्की सर्वव्यापी शक्तिपूजा। भी इसीके भीतर है। बोद्धो तथा जेनोफी वुद्धवेबपूजा, ऋषभवेयपूजा आवबि तथा तार्थड्वसपूजा अचतारोपासनारुपसे इसीके भातर है, शाक्त, शैव, वेप्णप आदि सास्प्रदायिक जमाकी पश्चेदेवोपासना भो इसीके भीतर है, सिख आदि नानक पथ्िियाकी शुरु पूजा भी विभूतिपूजा तथा झवतांरोपासनारप से इसीके भीतर हे श्रीर राजयोग परायण पेराग्यवान साधकफी निर्शेण निशाकार शर्तिम ब्रह्मपूजा भी इसौफे भीतर है। झत। जब राभी 'मत्नह॒ब, इसीके भीतर श्राये तो सनातनचमेकों छोड कर अन्य मजहबोमे फसना और फसकर सनातनधमकी ही निन्‍दा करना नीरे शशानमात्र है इसम॑ कुछ भी सन्‍्वेह नहीं हे। मलुष्प इसी सूलधमकी शरणम॑ शहकर अपने अपने अधिकारके अन्लुसार सभी प्रकार उन्नति इसीके हारा कर सकता है। पूर्ण सपशोगपेद मदहर्षियौने इस घर्मऊे भीतर किसी भी रोगका इलाज घाकी नही छो-ग है। फेघल उनपर पिश्यास रखनेसे सभी भ्रधिकारी फटयाश प्राप्त कए सफते है । धर्मचिशान तथा धर्माइ्ौक॑ घिषयम घर्णान फ्रफे अब धर्मकी आचश्य कताफे विषयमें कुछ बताया जाता है। बृहदारण्यकोपतन्तिषद्‌ चतुर्थ ब्राह्मणर्म इस धिपयर्म एक सुन्दर मश्च मिलता है, यथा--- “ब्रह्म वा इृदमग्र आसीदेकमेय तदेक॑ सन्न व्यमवत्‌ | तच्य योरूपमध्यसुजत पान याच्येतानि देवता क्रत्राणीन्वो वरुण! सोमो रुद्र! परन्यों यपो मृद्युरीशान इति स सेब प्यमत्रत्स पिशमएजत यान्येतानि देवजातानि गणश आरुयायन्ते बसवी रुद्रा आदित्या विश्वदेवा मस्त हृतिं। से नेत्र व्यभपत्स शोद बणमर्तजत पूषणमिय॑ ये पूपेय हींद सब पष्यति यदि किश्व | स नव व्यभप्त्तच्छू योरूपमत्यसुजत धर्म 8




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