प्रेम प्रभाकर | Prem Prabhakar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
320
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( २१ )
पास आया और वोछा, आओ, आगे चलें, इस
समय बडी गरमी है, में भूख के मारे व्याकुछ हो
रहा हू, सव कपड़े पसीने से भीगरहे हैं। कुतर भारी
भरकस आदमी था उसका मुहेछाछ होरहा था॥
सुमेरासिह- तुम्हारी वन््दूकू भरी हुईं है कि नहीं
कुबेर-' हा भरी हुई है ! ।
सुमर०- अच्छा चलो, पर व्रिछड न जाना ? बह
दोनों चल दिये, बातें करते जाने थे, पर ध्यान दाएँ
बाएं था, साफ मैदान होने के कारण दाए चारों
ओर जासक्ती थी, आगे चछकर सड़क दो पहाड़ियों
के वीचसे होकर निकला थी ॥
सुमेराभह-उस पहाड़ी पर चढ़कर चारों ओर
देखलेना उचित है, ऐसा न हो कि अचानक मरहंटे
कहशे से आकर हमें पकड़ ले ॥
कुबेरासिर-इससे क्या प्रयोजन है चले भी चलोगा
सुमेरातिह-/नहीं-आप यहा ठहरिये, में जाकर
देख आता हू ॥
छुमेर ने घोड़ा पहाही की ओर फिरा दिया
घोडा शिकारी था, उसे पक्षी की भाति छे उड़ा वह
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