सूफी कवि जायसी का प्रेम निरूपण | Sufi Kavi Jaayasi Ka Prem Niroopan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
178
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सूफी सिद्धात और प्रेमन्तत्त 1 २७
मुरीद बनाया था। इन सभी सतो में 'खौफ' की भावना भी प्रेरक तत्व के
रूप में विद्यमान थी विततु राविया वसराविया ने सूफीमत में प्रेम भावता की
स्थापता की । उसने छपना सवस्व ईश्वर चितन में अत कर दिया । राविया
मे आत्म समपण तथा पूण विश्वास की भावना प्रधात थी। राविया का पूरा
नाप राविया अल अदाविया अलवसरी था १ उसका जम स्थान दसरा था ।
इसलिए उसे राविया अल वसरिया भी कहते हैं ॥ उसका जाम सन् ७१७ ई०
दे लपभग बसरा मे हुआ था । अत्तार ते राविया दा परिचय अति आशसा
त्मक रब्दा में दिया है ।' उसने हृदय मे परमात्मा का प्रेम तथा उसका विरह्
व्याप्त था । उसकी एकमान्र ईहा ईइवर प्रेम में लोन हो जाने को थीं, वह
निध्वपट मारी दूसरी मेरी के समाद थी।'' राविया को परम प्रेम ही श्रेय
था | वह कहती है-' हे नाथ ! ठारे चमबः रहे हैं, छोग निद्रा निमग्त हैं
सम्राटो के द्वार बद है, प्रत्यक प्रेमी अपनी प्रेयसी के साथ और मैं यहाँ एकाकी
आपके साथ हू ) वह केवक परमात्मा वी छृपा कोर १२ ही विश्वास करती
सी। उस्तवा बहना था- हे ईश्वर मैं आपको द्विविध प्रेम करतो हु एक तो
स्वाथ पूण कि में आपके अतिरिक्त विसी अय वा ध्यान नहीं करती, दूसरा
शुद्ध प्रेम है कि अब आप मेरे मन का आवरण हटा दें तो मैं आपका साक्षा
स्शर कर पाती । दोन हो रूपो मर लेय आपका है। वह आपकी हो इुपा
का प्रसाद है ।
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