सूफी कवि जायसी का प्रेम निरूपण | Sufi Kavi Jaayasi Ka Prem Niroopan

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Sufi Kavi Jaayasi Ka Prem Niroopan by डॉ॰ निजामउद्दीन - Dr. Nijamauddin

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सूफी सिद्धात और प्रेमन्तत्त 1 २७ मुरीद बनाया था। इन सभी सतो में 'खौफ' की भावना भी प्रेरक तत्व के रूप में विद्यमान थी विततु राविया वसराविया ने सूफीमत में प्रेम भावता की स्थापता की । उसने छपना सवस्व ईश्वर चितन में अत कर दिया । राविया मे आत्म समपण तथा पूण विश्वास की भावना प्रधात थी। राविया का पूरा नाप राविया अल अदाविया अलवसरी था १ उसका जम स्थान दसरा था । इसलिए उसे राविया अल वसरिया भी कहते हैं ॥ उसका जाम सन्‌ ७१७ ई० दे लपभग बसरा मे हुआ था । अत्तार ते राविया दा परिचय अति आशसा त्मक रब्दा में दिया है ।' उसने हृदय मे परमात्मा का प्रेम तथा उसका विरह्‌ व्याप्त था । उसकी एकमान्र ईहा ईइवर प्रेम में लोन हो जाने को थीं, वह निध्वपट मारी दूसरी मेरी के समाद थी।'' राविया को परम प्रेम ही श्रेय था | वह कहती है-' हे नाथ ! ठारे चमबः रहे हैं, छोग निद्रा निमग्त हैं सम्राटो के द्वार बद है, प्रत्यक प्रेमी अपनी प्रेयसी के साथ और मैं यहाँ एकाकी आपके साथ हू ) वह केवक परमात्मा वी छृपा कोर १२ ही विश्वास करती सी। उस्तवा बहना था- हे ईश्वर मैं आपको द्विविध प्रेम करतो हु एक तो स्वाथ पूण कि में आपके अतिरिक्त विसी अय वा ध्यान नहीं करती, दूसरा शुद्ध प्रेम है कि अब आप मेरे मन का आवरण हटा दें तो मैं आपका साक्षा स्शर कर पाती । दोन हो रूपो मर लेय आपका है। वह आपकी हो इुपा का प्रसाद है । 1. 806 (७6 5<९छतव्त जाट शब5 लण्ाव्व छाफ़ फद लणफरजह ज॑ |. घए 19 गाते ४॥3$ 00 176 धयत 1006 गत 1०चागडए बाते १४85 स्याश्या07 उच्वे ते पार तटडार (० २9ए755०३ पद 1000 ह३ एछढ ८0७७ए८त फड ह्ोणए छि6 छ8$ 9 ऐजुबाए शापे 4 डएगॉी68 छत्ताकय 7 कछाएग्रद पी रिबन पाठ गाप्रघ्धट 0 54 ४100० ४०) 1 100८ एाल्‍<८. $वछिाए कजते ऋष्दा ब्ापे ए०7ए 1३ ण ऐल्ट पृ७ इलाड 10ए6 0130 1 10 43०8४ 5256 4 मजा: ठत छल्ड भग् रएटाए फठएए॥९ प्र5 एफटड( 1015 छेद फरकया पै035६ 78-15९ पक €एशा ६७ 219 3ठेणा, छथ्य्ल 7३०६ प्राल फ्रोढ फाब्रा5६ 71 पि4६ ०7 पड, प्रकरण छ. प्रढ एड्फ़ट गया ते [छठ ? +ै वेतष्गज साडगर ती क्‍य्वीड ए 284 रे /




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