कहानी की कहानी | Kahani Ki Kahani
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
112
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)खिलाया-पिलाया । वे बड़े गोभक्त थे। उनके पास
कृष्णा गौ थी। या तो वह काले रंग की रही
होगी या उसका नाम उन्होंने कृष्णा रख लिया होगा ।
वह सुबह उठते ही सबसे पहले कृष्णा की सानी-पानी
करते और उसी समय उसका दूध भी दुह लेते । इसके
बाद तुलसी-घाट पर स्तान करने चले जाते । वहां से
लोटकर पूजा-पाठ करते । पूजा-पाठ की समाप्ति पर
कृष्णा पर फूल चढ़ा और उसके अगले खूर पर अपना
मस्तक रख उसकी पूजा करते । कभी कृष्णा खाने-पीने
में या दूध देने में इधर-उधर करती, तो उसके दो
डडे भी जम्ता देते थे ! मतलब यह कि ब्रह्मचारीजी
कृष्णा की 'पृजा' केवल फूलों से ही नही किया करते
थे, डण्डों से भी करते थे !!
कुछ दिन काशी रहकर दोनों मित्रों ने फिर अपने
गांव लौट आना ते किया। केदारनाथ के मन में तो
(विद्वान साधु बनने! की धुन सवार थी।
अब घर के लोग इनके संकृस्त पढ़ने के इतने'
विरोधी नही थे | आठ वर्ष पहले घर से कुछ तीन
मील की दूरी पर वछवल के जिन फूफा जी के यहां
सारस्वत-व्याकरण' पढ़ना शुरू किया था उन्हीं के यहां
अब फिर लघुकोमुदी-व्याकरण' शुरू किया ।
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