गुजरात के संतो की हिन्दी साहित्य को दें | Gujarat Ke Santo Ki Hindi Sahitya Ko Den

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Book Image : गुजरात के संतो की हिन्दी साहित्य को दें  - Gujarat Ke Santo Ki Hindi Sahitya Ko Den

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वियय प्रवेत र्३ बड़ी विशवयता ता यह है कि विभिर आचार्यो की जौँति इतम कया त्ात्विक भद नहा मित्रता ! दूसर इनका सबसे बहा आधार प्राय लोकाचार तथा विचारादि पर तिभर रहता है। पथ जौर सम्प्रदाय में काइ तात्विक मेल दूढना कठिन है फिर भी सामायत जिनके अतग्रत आचार तथा विचार दांतो प्रकार की पद्धतियों का समावेश हुआ है उह सम्यताय कहा गया और जिनमे आचार विचार म से किसी एवं पद्धति का अनुसरण मिलता है उहे पथ के नाम से जभिहित किया गया। 'प्रशालिका इनसे कुछ मिल है। किसी प्रयानी विशेष विधिष्ट साथना जयश राली बिरीए का अतुसरण प्रमालिका के अतगत होता है। उदाहरणाथ असा ने क्पती सप्प्रदाव अथवा पथ का प्रणयव नहीं क्या फिर भी उनके परवर्ती शिष्या ते उनकी अली पर ज्ञान चर्चा वी है। इस प्रकार के अतुगामी अपने का ते सम्प्रटाययंत भानत हैं औौर ने पथानुयाया हा वल्कि' यं सभी अखा की विषिष्ट प्रशालिका ( साधत एवं शली ) के उपासक तथा परिणयक प्रतीत हांत हैं। सारागत यह कहा जा सकता है शि प्रशालिका मं क्वल विचारपक्ष पथ मे विशेपतवा आचारपक्ष तया सम्पदाध मे आचार तया विचार दोता का समय होता है । व सन! शब्द की व्याख्या सत्य वी गतीति एवं परम तन्‍्व वी खोज करने वाला व्यक्ति सामायत जनसमाज मे सात कहा जाता है. किन्तु साहित्य व इतिहास मं इस राह का विशिष्ट व्यास्या मिलती है। विशिष्ट लता के अनुमार सन्त शाज का वार बंवल उस आलश मवपुस्पों के लिए ही क्या जा सक्‍ता है जा पूरात जात्मनिष्ठ हान के अतिरिक्त समाज मे रहते हुए तिस्वाथ भाव से विश्व बल्याण मे प्रदृतत रहा करत हैं। इसके सिया थह हा” अपन रूडिगत अथ मे उत भानश्वर आटि निगुणा भक्ता के निय भी थ्रपुक्त होता जाया है जा दक्षिण क॑ बिदुत या वारकरी सम्प्रदाय वे प्रवारत' थे और कटाबित अनक बाता मे उठा वे समा होने वे कारण उत्तर भारत के बबौर आलि के लिय भा इसका प्रयाय हाठ संग्रा है ।* ब्युलत्ति की हि से डॉ बडथ्वाल ने इसकी सति वालि भाषा व उम्र शात 'ब्ल स जोडी है जिसका अथ निद्रतिमार्गों या वियायी हाता है १ हिंदो साहित्म कोश पृ० ऊप७ 1




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