जैन शिलालेखसंग्रह प्रथम भाग | Jain shilalekhsangrah Pratham Bhag

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Jain shilalekhsangrah Pratham Bhag by श्री हीरालाल जैन - Shri Hiralal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रवणबेल्गाल के स्मारक समस्त दक्षिण भारत में ऐसे बहुत ही कम स्थान होंगे जो प्राकृतिक सौन्दये में, प्राचीन कारीगरी के नमूनों में व धार्मिक प्रौर ऐतिहासिक स्थ्तियों में अवणबेल्गुलः की बराबरी कर सके | श्राय॑ जाति श्रौर विशेषतः जेन जाति की क्वगभग अटदाई हज़ार वष की सभ्यता का इतिहास यहाँ के विशाल और रमणीक मन्दिरों, भ्रत्यन्त प्राचीन गुफाओों, अनुपम उत्कृष्ट मूत्तियों व सैकड़ों शिक्ालेखों में अ्डित पाया जाता है। यहाँ की भूमि अनेक मुनि-महात्माओं की तपस्या से पवित्र, अ्रनेक धर्म-निष्ठ यात्रियों की भक्ति से पूजित और श्रनेक नरेशों श्रौर सम्राटों के दान से अलंकृत और इतिहास में प्रसिद्ध हुई है । यहाँ की धार्मिकता इस स्थान के नाम में ही गमित है । श्रवण” € श्रमण ) नाम जेन मुनि का है और बेल्गुल” कनाड़ा भाषा के बेल” श्लौर “गुल” दे शब्दों से बना है। “बेल”? का अथे धवल व श्वेत होता है श्रोर 'गुल' (गोल) कोल का भ्रप- भ्रंश है जिसका अथ सरोवर है। इस प्रकार श्रवणबेल्गुल का अथे जैन मुनियों का धवल्ल-सरोवर द्वोता है। इसका तात्पये संभवत: उस रमणीक सरोवर से है जो ग्राम के बीचोंबीच अब भी इस स्थान की शोभा बढ़ा रहा है। सात-भझाठ सी कक




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