स्फोटदर्शन | Sphotdarshan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
258
श्रेणी :
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No Information available about पंडित रंगनाथ पाठक - Pandit Rangnath Pathak
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)| वक्तव्य
श्राधुनिक भाषाविज्ञन बेखरी वाणी से प्रास्म्म होता है। 'विखरः,
अर्थात् शरीर के आधार पर उत्पन्न होनेवाली वाणी को 'बेंखरी? वाणी कहते हैं।
अतः, पाश्चात्य भाषाविज्ञान भाषाशास्त्र के अनुशीलन-परिशीलन के प्रसंग में
ध्वनियों के उच्चारण और श्रवण की प्रक्रिया का,विश्लेषय करने के लिए उच्चारण-
स्थान कण्ठ से झ्रोष्ठ तक एवं श्रवण-स्थान करणे-कुहर से मस्तिष्क तक के
हमारे शरीर के विभिन्न श्रवयवों के संचालन का गहरा श्रध्यवयन करके ध्वनियों
का स्वरूप-गुण-निर्धारण ओर वर्गीकरण करता है। ;भौतिक विज्ञान के श्राधुनिक
साधनों के सहारे भाषाशास्त्र के श्रन्त्गंत ध्वनियों के अध्ययन का विषय
वेज्ञानिक प्रयोगशालाओं में विकसित होकर ध्वनि-विज्ञान (फोनेटिक्स) के रूप
में श्रपना विशिष्ट स्वरूप निर्धारित कर चुका है। उसी प्रकार आधुनिक भाषा-
विज्ञान में शब्द-प्रयोग और वाक्य-विन्यास के वेज्ञानिक अध्ययन का विषय रचना«
विज्ञान (मॉरफोलॉजी) और अर्थाभिव्यक्ति का विषय अथ-विश्ञान (सेमान्टिक्स)
के रूप में निरूपित हो चुका है। पाश्वात्य भाषाविज्ञान ने शरीर-विशान
(फिजियोलॉजी), समाजविज्ञन (सोशियोलॉजी), मनोविज्ञान (साइकोलॉजी),
चतल-विज्ञान (एन्थोपोल्लॉजी) श्रादि सम्बद्ध विषयों के आभ्रय से बड़ी गहराई में
जाकर माषाश]खत्र के विविध श्रवयवों का बेशानिक अध्ययन प्रस्तुत किया है |
किन्तु, भाषा केबल उच्चार ही नहों है। एक ओर तो वह सूक्ष्म अन्त-
ज॑गत् के श्रदृश्य विचारों की संवेद संवाहिका है, दूसरी ओर वह स्थूल बहिजिंगत्
के दृश्य आचारों की नियामिका भी है। अ्रत), भाषा का घनिष्ठ सम्बन्ध विचार,
उच्चार और आचार, तीनों से है। इन तीनों क्रियाश्रों में हमारी चिति का
संचरण हद्वी मूल तत्व है। अति-मानस से मानस-स्तर तक इमारी चिति का
सँचरण विचार कहलाता है, मानस से लेकर श्रन्तिम बेखरी श्रववत्र तक की
उसकी यात्रा उच्चार कहलाती है और बाह्म-जगव् के क्रियात्मक नियोजन मे
बह आचार बन जाता है।
भारतीय भाषाश।सत्र वाणी के इन विविध श्रायामों की सम्यक विवेधना
के उपरान्त इस तथ्य पर पहुँचा था कि वाणी फे बहुरंगी वितान का मूलाधार
परावाक है, जो निस्तरंग चित्-शक्ति है। इस निस्तर॑ंग परा वाक में वाणी का
समस्त सोन्दर्य और श्रभिव्यक्ति का सारा चमत्कार मयूराण्डरसवत् निद्वित रहता है
User Reviews
Vikas Roshan
at 2021-05-30 13:10:36